# अकेलेपन की ताकत #
एक गुरु का एक नया नया शिष्य बना था उस युवा शिष्य के मन में बहुत सारे प्रश्न थे जिन्हें वह गुरु से पूछ लेना चाहता था एक दिन में गुरु के पास आया और उनसे कहा गुरुदेव मैंने देखा है
अहले लोग आपस में बहुत प्रेम करते हैं फिर धीरे धीरे उनके बीच मतभेद होने लगते हैं मतभेद झगड़े बदल जाते हैं और वह एक दूसरे को भला बुरा कहने लगते हैं के रिश्ते टूट जाते हैं और प्रेम नफरत बदल जाता है गुरुदेव आखिर ऐसा क्यों होता है कि जहाँ प्रेम था अब उसकी जगह नफरत ने ले ली गुरु ने कहा आज में एक किसान से मिलने उसके घर जा रहा हूँ तुम भी साथ चलना तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर उन्हें वहीं मिल जाएगा
थोड़ी देर बाद गुरु शिष्य को लेकर पास के एक गांव में पहुंची गांव के बीचों बीच पहुंचकर उन्होंने वहां बने एक घर के दरवाजे को खटखटाया अंदर से एक व्यक्ति बाहर आया उसने गुरु को प्रणाम किया और कहा कहीं गुरुदेव मैं किस प्रकार आपकी सेवा कर सकता हूं गुरु ने उस व्यक्ति से कहा तुम्हारा तुम्हारी पत्नी के साथ जो विवाद चल रहा था क्या वह समाप्त हो गया कि आप तुम खुश हो उस व्यक्ति ने कहा उस औरत से विवाह करना मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती हे गुरुदेव वह बिल्कुल भी अच्छी नहीं है वह मेरा और मेरे परिवार का ख्याल नहीं रखती वह हमेशा अकड़कर बात करती है वह हमेशा गुस्से में रहती है उसने आज तक मुझे समझा ही नहीं मेरी कोई बात मानी ही नहीं वह बिल्कुल भी अच्छी नहीं है ईश्वर ने मेरे भाग्य में न जाने ये कैसी पत्नी लिखती है अब मुझे छोड़कर मायके चली गई है और अब तो मैं भी यही चाहता हूं कि वह वही रहे और कभी मेरे जीवन में वापस ना आए गुरु ने अपने से कहा देखा तुमने यही मनुष्य का स्वभाव है हर मनुष्य के अंदर अच्छाई और बुराई दोनों होती है लेकिन मनुष्य सिर्फ बुराई को ही याद रखता है अच्छाई को नहीं और जब वह किसी की बुराई करने पर आता है तो शुरू से लेकर अंत तक सिर्फ बुरा ही देखता है और बुरा ही बोलता है और जब वह अपने मन में सब कुछ बुरा ही बैठा लेता है तब वह यह आशा करता है कि उसके जीवन में सब अच्छा हो बुराई से जीवन में अच्छाई कैसे ऐसा सकती है जीवन में अच्छाई लाने के लिए सुख और शांति लाने के लिए हमें अच्छाई को तो देखना ही होगा लेकिन यह काम कोई नहीं करता क्योंकि ऐसा करने से मनुष्य के अहंकार को चोट पहुंचती है और वह अपने अहंकार के सिंहासन से गिना नहीं चाहता गुरु के मुख से ये सब बातें सुनकर उस व्यक्ति ने कहा गुरु
देब आप यह क्या कह रहे हैं अगर कोई बुरा है तो उसे बुराई तो दिखेगी ही मेरी पत्नी बुरी है तो मैं उसमें बुराई ही देखूंगा उसने आज तक ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे मैं प्रसन्न हो सकूं उन्होंने कहा कि आज तक तुमने कोई ऐसा कार्य किया जिसे तुम्हारी पत्नी खुश हो सके उस व्यक्ति ने कहा उसने मुझे कभी कोई ऐसा मौका ही नहीं दिया गुरुदेव कि में उसके लिए कुछ कर सकूं गुरु ने कहा चलो तुम कुछ देर के लिए ये सारी बुराइयां छोड़ दो अपनी पत्नी की कमियां भूल जाओ अपनी पत्नी की कोई एक अच्छाई याद करो और मुझे बताओ उस व्यक्ति ने कहा एक बार मेरी माँ बहुत बीमार पड़ गई थी तब उसने उनकी बहुत सेवा की थी उन दिनों उसने रात दिन काफी ध्यान नहीं रखा था गुरु ने कहा क्या इसके अलावा तुम्हें अपनी पत्नी की कोई और अच्छाई याद आ रही है उस व्यक्ति ने कहा कि हाँ वो हमेशा घर में सुबह सबसे पहले उठती थी और मेरी व मेरे माता पिता के खाने का बहुत ध्यान रखती थी एक बार जब मैं बहुत बीमार हो गया था तब रात भर जाग जागकर उसे दवाइयां दिया करती थी वे बहुत
मेहनती थी और अगर उसे कोई तकलीफ होती थी तो मुझे बताती नहीं थी वह हमेशा इसी प्रयास में रहती थी कि मैं खुश रह सकूं यह सब बोलते बोलते उस व्यक्ति की आंखों से आंसू आ गए और उसने कहा गुरुदेव मुझे यह क्या हो गया है माना कि मेरी पत्नी में बहुत सी कमियां हैं लेकिन वह बुरी नहीं है अटार्नी ही क्यों में आज से पहले उसकी अच्छाइयों को देख नहीं पाया गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा जब हम किसी भी बुराई देखते हैं तो बुराई बुराई को खींचते है और वे सब कुछ बुरा दिखाती है और देखती है और फिर हमारे जीवन में भी सब कुछ बुरा होने लगता है पर जब हम किसी की अच्छाई देखते हैं तो अच्छाई अच्छाई को खींचती है और हमारे साथ सब कुछ अच्छा होने लगता है उस व्यक्ति को बात समझ आ गई उसने गुरु से आज्ञा ली और अपनी पत्नी को लेने चला गया गुरु ने शिष्य से कहा क्या तुम समझे कि रिश्ते क्यों टूट जाते हैं प्रेम नफरत में बदल जाता है जब मन में नफरत हो तो उसने प्रेम नहीं रह सकता और जहाँ प्रेम हो वह नफरत नहीं रह सकती है हम अपने मन में प्रेम रखना चाहते हैं या नफरत यह हम पर ही निर्भर करता है किसी ने कहा गुरुदेव मैं आपकी बात बहुत अच्छे से समझ गया हूँ मेरा एक और प्रश्न है क्या आप मेरे इस प्रश्न का उत्तर देंगे गुरु ने कहा अवश्य तुम बेझिझक अपना प्रश्न पूछ सकते हो जिससे ने कहा गुरुदेव इस दुनिया में सबसे मुश्किल कार्य किया है गुरु ने कहा इस दुनिया का सबसे मुश्किल कार्य एक अंत में रहना है किसी ने कहा इसमें मुश्किल जैसा क्या है एकांत में तो कोई भी रह सकता है यह सुन गुरु मुस्कुराए और बोले अगर यह कार्य तुम्हें इतना आसान लगता है तो क्या तुम तीस दिनों के लिए एकांतवास में रह सकते हो तुम्हें तीस दिन के लिए कहीं नहीं जाना एक गुफा में रहना है तुम बाहर किसी व्यक्ति से संपर्क नहीं करोगे ना ही गुफा के अंदर किसी भी प्रकार के कार्य में व्यस्त हो सिर्फ शांत और मौन हो गया क्या तुम यह कर सकोगे शिष्य ने कहा लेकिन गुरुदेव यह एकांतवास में रहकर क्या होगा इससे क्या मिलेगा गुरु ने कहा जो मिलेगा वहीं तो तुम्हें पता चल ही जाएगा लेकिन प्रश्न यह है कि क्या तुम इतना आसान कार्य कर पाओगे से से तैयार हो गया गुरु अपने शिष्य को एक गुफा में ले गए और वहां उन्होंने उसके तीस दिन के खाने पीने का इंतजाम कर दिया और कहा गुफा का द्वार खुला है जब तुम्हें लगे कि तुमसे यह नहीं हो रहा तो तुम बाहर आ सकती हो इस गुफा के अंदर प्रवेश कर गया पहले दिन उसने बड़ी आसानी से अपना समय व्यतीत कर लिया दूसरे दिन उसे अजीब सा महसूस होने लगा उसका मन बार बार बाहर की ओर भाग रहा था उसे घुटन हो रही थी वह इधर उधर टहलने लगा घबराने लगा लेकिन जैसे तैसे करके उसने दूसरे दिन भी काट लिया पर तीसरे दिन वह बहुत बेचैन हो गया उसके मन में विचार आने लगे कि यह क्या बेकार का काम कर रहा है बाहर पता नहीं क्या क्या हो रहा होगा और वे यहां गुफा में बैठा है वह तीसरे दिन ही गुफा से बाहर आ गया और गुरु के पास पहुंचा जिसको को देखते ही गुरु मुस्कुराई और बोली मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था तीस दिन एकांत में रहने की बात हुई थी तुम तो तीन दिन में ही बाहर आ गए से से ने कहा पता नहीं गुड डे पर में अंदर से बहुत अधिक बेचैन हो रहा था बस बार बार बाहर जाने का मन कर रहा था इन तीन दिनों में मैं एकांत भी इन्हीं साथ पाया मन में बहुत सारे विचार भावनाएं कल्पनाएं और बहुत कुछ चल रहा था मुझे जबरजस्ती बाहर की ओर खीच रहा था गुरु ने कहा वह कोई और नहीं तुम्हारा मन था मन को एकांत पसंद ही नहीं है वह हमेशा किसी दूसरे को ढूंढता रहता है लेकिन जब उसे कोई दूसरा नहीं मिलता कोई दूसरा दिखाई नहीं देता तो वह बेचैन हो जाता है क्योंकि उसका वजूद दूसरों से ही है अगर दूसरे नहीं हूं गए तो मन की शक्ति खत्म हो जाएगी और वह तुम पर से अपना नियंत्रण खोने लगेगा इसीलिए वह जल्द से जल्द तुम्हें बाहर की ओर ले जाना चाहता था और तुम बाहर आ गए शिष्य ने कहा गुरुदेव आप बिल्कुल ठीक कह रहे थे कि एकांत वास करना दुनिया का एक बहुत ही मुश्किल कार्य है गुरु ने कहा तुमने यह ही पूछा कि इस दुनिया का सबसे आसान कार्य किया है शिष्य ने कहा गुरुदेव मेरे मन में यह प्रश्न भी था लेकिन में पूछ नहीं पाया गुरु ने कहा अगर इस दुनिया का सबसे मुश्किल कार्य एकांत वास है तो इस दुनिया का सबसे आसान कार्य भी एकांतवास ही है किसी ने कहा आप यह कैसी विरोधाभासी बातें कर रहे हैं गुरुदेव मैं कुछ समझ नहीं पा रहा गुरु ने कहा एकांत वास हमारा स्वभाव है बरसों अपने स्वभाव से दूर हो गए हैं और मन के बनाए इस जाल में फंसकर हम हमेशा किसी दूसरे को ही ढूंढते रहते हैं और अपने एकांत को खो बैठते हैं एकांत को साधना नहीं पड़ता बल्कि वही हमारा स्वभाव है जिससे ने कहा अगर एकांत हमारा स्वभाव है और यह इतना आसान है तो मैं क्यों तीन दिन में ही उस गुफा से बाहर आ गया क्यों मुझे वहां रहना इतना मुश्किल लगा क्यों वहां मुझे घुटन हो रही थी क्यों इतना बेचैन हो गया गुरु ने कहा जब तक एकांत तुम्हारे अंदर से उत्पन्न नहीं होगा तब तक चाहे तुम किसी गुफा में बंद करके ही क्यों न रखें जाओ तुम एकांत में नहीं होगी वहां भी तो अपने आसपास भीड़ इकट्ठी कर लोगी और वह भी और तुम्हारे मन के भीतर होगी इसके बाद गुरु शिष्य को एक नदी के पास ले गए और कहा इस नदी पर बांध बांध ना हो तो तुम्हें कितना समय लगेगा क्या तुम उसे आज की आज बन सकते हो से से ने कहा नहीं गुरुदेव भला एक दिन में यह कैसे संभव होगा दो दिन तीन तीन या चार दिन में भी नहीं होगा इसमें तो बहुत समय लगेगा पहले योजना बनानी होगी फिर धीरे धीरे बांध की तैयारी होगी आने वाली हर समस्या को देखा जाएगा और से निपटा जाएगा और धीरे धीरे समय के साथ बांध बनकर तैयार होगा गुरु ने कहा कि कहा तुमने और बिल्कुल इसी तरह मन की नदी पर धीरे धीरे बांध बांधा जाता है एक दो तीन या चार दिन में नहीं धीरे धीरे समय लगा कर यह किया जाता है जिससे ने कहा गुरुदेव आप जो मुझे समझाना चाह रहे हैं वह में अच्छे से समझ गया हूँ मैं भी धीरे धीरे अपनी मन की नदी पर बांध बांधने की तैयारी करूंगा उस दिन से शिष्य ने अपनी साधना पर ध्यान देना शुरू कर दिया वह धीरे धीर मन के विरुद्ध खड़ा होने लगा उसने छोटे छोटे संकल्प लेने शुरू किए उसने बहुत सारे संकल्पों को पूरा किया और बहुत सारे संकल्प उसके अधूरी रह गई जो बीच में ही टूट गए थे पर हर बार वह और अधिक मजबूत होता चला गया हर संकल्प पूरा होने के साथ उसका खुद पर नियंत्रण बढ़ता चला गया समय के साथ उसके छोटे छोटे संकल्प बड़े संकल्पों में बदलने लगे
फिर एक दिन उसने संकल्प लिया और वह उस गुफा के अंदर चला गया तीस दिन वह उस गुफा से बाहर नहीं आया जब तीस दिन बीत गए तो गुरु को अपने शिष्य की चिंता हुई और में उसे देखने गुफा के अंदर चले गए उन्होंने देखा कि उनका शिष्य बिल्कुल शांत होकर एक स्थान पर ध्यान में बैठा हुआ है गुरु को देखते ही से खडा
हो गया और उन्हें प्रणाम कर उनसे कहा गुरुदेव आप बिल्कुल सत्य कहते थे एकांत वास करना बहुत ही आसान कार्य है एकांत ही हमारा स्वभाव है और यही हमारी प्रकृति है इसके लिए कुछ भी करना नहीं होता यह है बस हमें दिखाई नहीं देता इसके बाद शिष्य और गुरु दोनों उस गुफा से बाहर आ गए अब आप सोच रहे होंगे कि इस एकांत वास की कहानी का मतलब क्या है वास्तव में एकांत वह चीज है जो हमें सत्य दिखाता है शांति दिखाता है हम सब अपने जीवन में बहुत छोटी छोटी चीजों में उलझे रहते हैं जो असल में इतनी मामूली हैं कि उनके होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता पर हमने उनको इतना बड़ा बना लिया है कि वह हमारे जीवन में बहुत मायने रखती है और हमारा जीवन उनके चारों ओर घूमता रहता है और हम वहीं के वहीं भटकते रहते हैं इस दुनिया में कोई भी नहीं बचा चाहे कोई कितना ही बड़ा इंसान क्यों ना हो कितनी भी आकर के साथ क्यों न खड़ा हूँ सब मिट्टी में मिल गए हैं राजा हो भिखारी हो शक्तिशाली हो या कम
ज़ोर साधू सन्यासी कोई भी हो किसी की अगर बाकी नहीं रही जिन छोटी छोटी चीजों के लिए आज हम इतना लड़ते झगड़ते रहते हैं क्या करोगे इन सब चीजों का कुछ पल ही लगते हैं शरीर को मिट्टी बनने में और हम ऐसे लड़ रहे हैं जैसे कि हम हमेशा यही रहने वाले हैं कुछ समय मिला है बहुत कीमती है कर लो कुछ सीख लो कुछ जान लो कुछ तो जीवन जी लो सब कुछ जानते हुए भी हम कुछ नहीं जानती बस यही हमारी बिडम्बना है और यही हमारी भी होती है और इसी से बाहर निकलने का नाम जागरण हैं और जागृति है और होश है और बुद्धत्व भी है
Thank for Reading ❣️