गौतम बुद्ध का जन्म शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी यानी कि नेपाल में पिता राजा शुद्धोधन और माता माया देवी के घर हुआ था उनका बचपन का नाम सिद्धार्थ था लेकिन गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण उन्हें गौतम नाम से भी पुकारा जाता था गौतम के जन्म के साथ दिन बाद ही उनकी माता माया देवी का निधन हो गया था उसके बाद उनका पालन पोषण उनकी मौसी जो कि उनकी सौतेली मां थी और शुद्धोधन की दूसरी रानी माह प्रजापति गौतमी ने किया जब गौतम बुद्ध के समारोह को आयोजित किया गया तब उस समय के प्रसिद्ध साधु दृष्टा आश्रित ने एक भविष्यवाणी की थी कि यह बच्चा या तो एक महान राजा बनेगा या एक महान पथ प्रदर्शक उन्होंने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषद की शिक्षा प्राप्त की यही नहीं वेदों की शिक्षा के अलावा उन्होंने कुश्ती घुडदौड तीर कमान जैसी गला को एक क्षत्रिय की भांति सीखा कम उम्र में शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने के बाद गौतम बुद्ध का विवाह सिक्सटीन वर्ष की आयु में गोली वर्ष की कन्या यशोधरा से हुआ था उनके पिता ने सिद्धार्थ के लिए भोग विलासिता का भरपूर प्रबंध किया हुआ था उनके लिए तीन ऋतुओं के आधार पर अलग अलग तीन महल बनवा दिए गए थे जहां
नाच गाना और मनोरंजन की भरपूर व्यवस्था थी
इसके साथ साथ हर समय दास और दासी सेवा करने में मौजूद रहते थे परन्तु यह सब व्यवस्था सिद्धार्थ को सांसारिक मोहमाया में बांध नहीं सकी एक बार जब बसंत ऋतु में सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले जहां उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया उसके दांत टूट गए थे बाल पक गए थे शरीर टेढ़ा हो गया था हाथ में लाठी पकडे धीरे धीरे कांपता हुआ वह सड़क पर चल रहा था इसको देखकर बुद्ध बहुत ज्यादा परेशान हुए जब दूसरी बार सिद्धार्थ बगीचे की सैर को निकले तब उनकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया जिसकी सांसे तेजी से चल रही थी कंधे ढीले पड़ गए थे बाहें सूख गई थी पेट फूल गया था चेहरा पीला पढ़े गया था दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था तीसरी बार जब सिद्धार्थ को शेयर करते हुए एक अर्थ ही दिखाई दी जहां चार आदमी कंधा देते हुए अर्थी उठाकर लिए जा रहे थे पीछे बहुत से लोग रो रहे थे कोई छाती पीट रहा था कोई अपने बाल नोच रहा था इन सभी दृश्यों को देखकर सिद्धार्थ बहुत विचलित हुए उन्होंने सोचा धिक्कार है ऐसी जवानी पर जो जीवन को पूरी तरह सोख लेती है धिक्कार है ऐसे स्वास्थ्य का जो शरीर को नष्ट कर देता है धिक्कार है ऐसे जीवन का जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर लेता है और मन ही मन विचार करने लगे क्या बुढ़ापा बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी उसके बाद जब सिद्धार्थ अर्थ चौथी बार बगीचे की सैर को निकले तब उन्हें एक संन्यासी दिखाई दिया जो संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त होकर प्रसन्न चित्त प्रतीत हो रहा था जिससे गौतम बुद्ध काफी प्रोत्साहित हुए और एक संन्यासी बनने का निर्णय किया राज्य का मोह छोड़कर सिद्धार्थ तपस्या के लिए राज ग्रह पहुंचे जहां उन्होंने भिक्षा मांगने शुरू की और घूमते घूमते आरआर का अलार्म और उदक राम पुत्र के पास जा पहुंचे जिससे उन्होंने योग साधना सीखी समाधि लगाना सीखा लेकिन सिद्धार्थ को उससे भी संतोष नहीं हुआ जिसके बाद वह रूबेला पहुंचे और वहां पर अलग तरह से तपस्या करने लगे शुरुआत में गौतम बुद्ध ने केवल तेल चावल खाकर तपस्या शुरू किया उसके बाद कुछ भी खाए तपस्या शुरू की लाहौर संग्रहालय में गौतम बुद्ध का तपस्या से क्षीण शरीर से एक साल तक तपस्या करने के बाद भी सिद्धार्थ की तपस्या सफल नहीं हुई एक दिन बुद्ध के मध्यम मार्ग से होकर कुछ स्त्रियां गुजरती है जहां गौतम बुद्ध तपस्या कर रहे थे उन स्त्रियों का एक गीत सिद्धार्थ के कान में पड़ा वीणा के तारों को ढीला छोड़ दो ढीला छोड़ देने से उनका सुरीला स्वर नहीं निकलेगा पर तारों को इतना भी मत का शौक वे टूट जाए यह बात सिद्धार्थ को जहाज गई और मान गए कि नियम
आहार विहार से ही योग सिद्ध होता है वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ बट वृक्ष के नीचे तपस्या कर रहे थे और उसी गांव की एक स्त्री सुजाता ने एक पुत्र को जन्म दिया क्योंकि उसने बेटे के लिए एक वटवृक्ष की मन्नत मांगी थी मन्नत पूरी होने पर वह स्त्री सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर वाटर वृक्ष के पास जा पहुंची जहां सिद्धार्थ तपस्या कर रहे थे उस स्त्री को ऐसा लगा कि वृक्ष देवता ही मानो पूजा कर रहे हैं सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई उसी तरह आपकी भी मनोकामना पूरी हो इतना कहकर सुजाता वहां से चली गई और उसी रात तपस्या करते हुए सिद्धार्थ की साधना सफल हो गई उस समय सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान का बोध हुआ था तभी से सिद्धार्थ बुद्ध कहलाए जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध हुआ वर्तमान में स्थान बोधिवृक्ष कहलाया और बोध गया के नाम से लोकप्रिय हुआ बोधगया में स्थापित बोधिवृक्ष एटी वर्ष की उम्र में उन्होंने अपने धर्म का संस्कृत की जगह उस समय की सरल भाषा पाली में प्रचार किया कुछ समय के बाद वह काशी के पास डा जो कि वर्तमान में सारनाथ में है वहां पहुंचे जहां उन्होंने सबसे पहले धर्मोपदेश दिया वाली सिद्धांत के अनुसार एटी वर्ष की आयु में गौतम बुद्ध ने घोषणा की कि वह जल्द ही परिनिर्वाण के लिए रवाना होंगे जहां गौतम बुद्ध ने एक लोहार के घर अपना आखिरी भोजन ग्रहण किया जिससे उनकी तभी खराब हो गई थी तभी बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद को कहा कि वह लोहार को कहे कि उनसे कोई गलती नहीं हुई है और उनका भोजन भी ठीक है उन्होंने लोगों को मध्यम मार्ग का उपदेश दिया और अहिंसा पर बहुत जोर दिया उन्होंने यज्ञ और पशु बलि की निंदा की बुद्ध के उपदेशों का सार कुछ इस प्रकार है अग्नि हो तथा गायत्री मंत्र का प्रचार ध्यान तथा अंतर्दृष्टि मध्यम मार्ग का अनुसरण चार आर्य सत्य अष्टांग मार्ग इत्यादि गौतम बुद्ध ने बहुजन हिताय लोक कल्याण के लिए अपने धर्म का देश विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को इधर उधर भेजना शुरू किया इसके अलावा अशोक आदि सम्राटों ने भी विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी अहम भूमिका निभाई मौर्य काल तक आते आते भारत के अतिरिक्त बौद्ध धर्म चीन जापान कोरिया मंगोलिया बर्मा थाईलैंड हिंद चीन श्रीलंका आदि में फैल गया था इन देशों में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक धर्म है हिन्दू धर्म के अनुसार गौतम
बुद्ध को भगवन विष्णु का अवतार माना जाता है
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