भगवान गौतम बुद्ध को कौन नहीं जानता भगवान बुद्ध ने अपने जीवनकाल में कई उपदेश दिए हैं वे समझदारी से जीवन जीने सेहत का ध्यान रखने क्रोध न करने आध्यात्मिक जीवन जीने और किसी भी तरह की हिंसा न करने तथा जीवन में त्याग को अपनाने की सीख देते हैं आइए जानते हैं यहां भगवान बुद्ध के दस खास उपदेश जो वर्तमान में भी प्रासंगिक है वन सत्य के बारे में बुद्ध कहते हैं कि तीन चीजें ज्यादा देर तक छुपी नहीं रह सकते वे हैं सूर्य चंद्रमा और सत्य जिस तरह सूर्य रोज़ प्रत्यक्ष दिखाई देता है चंद्रमा भी दिखाई देता है उसी तरह सत्य कभी ना कभी
सामने आ ही जाता है अतः असत्य को अपने आचरण में न उतारें उससे दूर रहने में ही मनुष्य की भलाई है तू चरम धारण न करें भगवान बोले भिक्षुओं माह चरम को सही है बाग और चिट्ठे के चरम को नहीं धारण करना चाहिए जो धारण करे उसे दिक्कत दुष्कृत्य का दोष होता है थ्री जीवन का उद्देश्य सही रखें जीवन में किसी उद्देश्य या लक्ष्य तक पहुंचने से ज्यादा महत्वपूर्ण उस यात्रा को अच्छे से संपन्न करना होता है चार प्रेम का मार्ग अपनाया बुराई से बुराई कभी खत्म नहीं होती घृणा को तो केवल प्रेम द्वारा ही समाप्त किया जा सकता है यह एक अटूट सत्य है फाइव खुद जैसा औरों को समझना जैसे मैं हूँ वैसे ही वे हैं और जैसे वे है वैसा ही मैं हूँ इस प्रकार सबको अपने जैसा समझकर न किसी को मानें न मानें को प्रेरित करें सेक्स स्वयं पर विजय जीवन में हजारों लड्ढा या जीतने से अच्छा है कि तुम स्वयं पर विजय प्राप्त कर लो फिर जीत हमेशा तुम्हारी होगी इसे तुमसे कोई नहीं छीन सकता सेवन दूसरों का बुरा न करें अपनी प्राण रक्षा के लिए भी जानबूझकर किसी प्राणी का बढना करें जहाँ मन हिंसा से मुद्दा देता है वहां दुख अवश्य ही शांत हो जाता है एक बैर भावना रखें वेदियों के प्रति बैर रहित होकर हां हम कैसा आनंदमय जीवन बिता रहे हैं वैरी मनुष्यों के बीच अवैध ही होकर विहार कर रहे हैं नाइन पशु हिंसा से बचें पहले तीन ही थे इच्छा क्षुधा और बुढ़ापा पशु हिंसा के बढ़ते बढ़ते वे अट्ठानवे हो गए यह याजक यह पुरोहित निर्दोष पशुओं का वध कर आते हैं धर्म का ध्वंस करते हैं
यज्ञ के नाम पर की गई यह पशु हिंसा निश्चय ही निन्दित और नीच कर्म है प्राचीन पंडितों ने ऐसे याजकों की निंदा की है चयन दूसरों को सुख दे मनुष्य यह विचार किया करता है कि मुझे जीने की इच्छा है मरने की नहीं सुख की इच्छा है दुख की नहीं यदि मैं अपनी ही तरह सुख की इच्छा करने वाले प्राणी को मार डालो तो क्या यह बात उसे अच्छी लगेगी इसलिए मनुष्य को प्राणी घाट से स्वयं तो विरत हो ही जाना चाहिए उसे दूसरों को भी हिंसा से विरत कराने का प्रयत्न करना चाहिए
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