नमस्कार दोस्तों आज हम बात करने जा रहे हैं कि ऐसे सीरियल किलर के बारे में जो जिस कमरे में खून करता था वहीं बैठकर खाना खाता था उसने काफी सालों तक पुलिस की नाक में दम कर रखा था क्योंकि वह सिर्फ मदद नहीं करता था बल्कि पुलिस को खुलेआम चुनौती भी देता था कि अगर हिम्मत है तो मुझे पकड़कर दिखाओ आज हम बात करने जा रहे हैं चंद्रकांत झा की बहुत से लोगों की तरह चंद्रकांत झा भी बिहार से दिल्ली काम की तलाश में आया था तो फिर आखिर हुआ क्या बिहार के छोटे से गांव से निकलकर आया आदमी एक खतरनाक सीरियल किलर के रूप में मशहूर कैसे हो गया यह कहानी है चंद्रकांत झा की जो एक मामूली दिहाड़ी मजदूर से दिल्ली के सबसे फेमस किलर्स में से एक बन गया कहानी शुरू होती है दिल्ली के तिहाड़ जेल से नॉन फंक्शनल प्रेजेंस वाला तिहाड़ जेल चार सौ एकड़ से भी ज्यादा एरिया में फैला हुआ है इस जेल को डिपार्टमेंट ऑफ दिल्ली प्रेजेंस और गवर्नमेंट ऑफ दिल्ली रन करते हैं यह कॉम्प्लेक्स जनकपुरी में है और तिहाड़ गांव से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर है कई सारे गार्ड चौबिस घंटे तिहाड़ जेल की सुरक्षा के लिए तैनात रहते हैं तिहाड़ जेल का इतना लंबा चौड़ा डिस्क्रिप्शन सुनकर आपको लग रहा होगा कि कोई भी इंसान तिहाड़ जेल के आसपास तो किसी तरह का क्राइम करने के बारे में सोच भी नहीं सकता लेकिन यहीं पर आप पूरी तरीके से गलत है नवंबर दो हज़ार तीन का टाइम तिहाड़ जेल में काम करने वाले पुलिस वालों को बहुत अच्छी तरीके से याद रहने वाला था क्योंकि उस दिन तिहाड़ जेल के गेट नंबर एक के बाहर उन्हें प्लास्टिक में लिपटी हुई एक लाश मिली थी
लाश के साथ साथ खूनी ने पुलिसवालों के लिए एक चिट्ठी भी छोड़ी थी जिसमें ये साफ साफ लिखा हुआ था कि मैं दिल्ली पुलिस के लिए आगे भी ऐसे गेट्स लाता रहूँगा मुझे दिल्ली पुलिस से डर नहीं लगता और अगर पुलिस मुझे नहीं पकड़ पाई तो में इसी तरह से लोगों को माता रहूंगा पुलिस ने इस मामले में छानबीन करने की कोशिश की लेकिन उस वक्त उनके हाथ ऐसा कोई सबूत नहीं लगा जिसके बेसिस पर आगे बढ़ा जा सके इसी तरह से दो साल बीत गए वो लाश तिहाड़ जेल के बाहर किसने और क्यों फेंकी थी इसका पता नहीं चल पाया लेकिन पुलिस को अब एक और तगड़ा झटका लगने वाला था क्योंकि बीस अक्टूबर दो हज़ार छः के दिन उनके पास एक कॉल आया कॉल की दूसरी तरफ जो इंसान था उसने पुलिसवालों को एक ऐसी बात बताई जिसे सुनकर उनके होश उड़ गए उसने बताया कि तिहाड़ जेल के गेट नंबर तीन के पास एक लाश को टोकरी में रखा गया है इतना सुनकर कई सारे पुलिसवाले गेट नंबर तीन के पास जाकर इकट्ठा हो गए थे और तब उन्हें पता चला कि फोन करने वाला मजाक नहीं कर रहा था गेट के सामने वाली सड़क के पास सच में एक लाश को टोकरी में बांध कर रखा गया था सबसे इंटरेस्टिंग बात यह थी कि टोकरी में लाश के साथ साथ पुलिस को दुबारा एक चिट्ठी मिली जो उन्हीं के लिए लिखी गई थी जब पुलिसवालों ने लेटर पड़ा तब उन्हें पता चला कि हत्यारे ने उन्हें खुलेआम चैलेंज किया है लेटर में लिखा था कि मैं बहुत टाइम तक एक नाजायज के खेलता रहा लेकिन अब मैंने हकीकत में एक मर्डर किया है तुम लोग अगर मुझे पकड़ सकते हो तो पकड़कर दिखाओ इस लेटर से इतना तो साफ हो गया था कि हत्या करने वाला कोई ऐसा इंसान हैं जिसे दिल्ली पुलिस पर किसी बात का गुस्सा है कोई ऐसा जिसकी पुलिस के साथ हिस्ट्री अच्छी नहीं रही है पुलिस इस मामले को और इन्वेस्टिगेट करने लगी क्योंकि अब दो बार ऐसा हो चुका था कि तिहाड़ जेल के बाहर लाशें मिली थी पुलिस को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि उन्हें आगे और कितनी लाशें इसी तरह से मिलने वाली है अट्ठारह मई दो हज़ार सात को फिर से एक लाश तिहाड़ जेल के बाहर मिली यह लाश भी क्रिमिनल ने गेट नंबर तीन के पास ही डंप की थी पुलिस के लिए अब तक किसी भी लाश को आइडेंटिफाई कर पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था क्योंकि हर लाश को कई टुकड़ों में काटकर तिहाड़ जेल के बाहर रखा जा रहा था पुलिस के ऊपर प्रेशर आ गया था और उन्हें जल्द से जल्द इस सीरियल किलर का पता लगाना था जो उन्हें बार बार चैलेंज कर रहा था
इन्वेस्टिगेशन ने अब और ज्यादा जोर पकड़ लिया था और अल्टीमेटली सीरियल किलर की एक गलती उस पर भारी पड़ गई अब तक किलर और पुलिस के बीच ही चूहे बिल्ली का खेल चल ही रहा था कि अचानक से इन्वेस्टिगेशन के टाइम पुलिस को याद आया कि किलर ने जो लेटर लिखे थे उसमें उसने कुछ दो तीन नामों को मेंशन किया था जिससे उसे खास दुश्मनी थी उसने अपने सीरियल किलर बनने के लिए दो लोगों को खासतौर पर ब्लेम किया था जिसमें से एक थे एडिशनल डिप्टी कमिश्नर मनीष अग्रवाल और दूसरे थे हवलदार बलबीर सिंह जो कि तिहाड़ जेल में उस वक्त एक वॉर्डन थे इस क्लू की मिलने के बाद पुलिस को और भी क्लू लगातार मिलते चले गए अब तक यह तो तय हो चुका था कि हत्यारा कोई ऐसा है जो पहले तिहाड़ जेल में था और वहां अपने साथ हुए बुरे बर्ताव की वजह से उसने बदला लेने की ठानी अपने लेटेस्ट लेटर में खूनी ने यह भी माना था कि नवंबर दो हज़ार तीन को भी लाश उसी ने ही डंप की थी इससे पुलिस को कम से कम यह पता चल गया कि यह किलर दो हज़ार तीन से पहले तिहाड़ जेल में बंद था
हत्यारे ने आखिरी बॉडी को डंप करने के बाद हरी नगर के एसएचओ से भी तुरंत ही कांटेक्ट कर लिया था और यही उसकी सबसे बड़ी गलती थी
एसएचओ ने हत्यारे से जान बूझकर लंबी बातचीत की ताकि उन्हें उसके बारे में और ज्यादा जानकारी मिल सके अब उन्हें एक तरफ आइडिया हो गया था कि सस्पेक्ट कौन हो सकता था यह कोई ऐसा था जिसे नॉर्थ वेस्ट डिस्ट्रिक्ट में हुए क्राइम की वजह से दो हज़ार तीन में सजा हुई थी और जिसे तिहाड़ के जेल नंबर तीन में लॉन्च किया गया था जहां हवलदार बलवीर सिंह ने उसके साथ बुरा बर्ताव किया था बहुत सारे सस्पेक्ट को वेरीफाई करने के बाद पुलिस ने चार लोगों को शॉर्टलिस्ट किया जिसमें से एक था चंद्रकांत झा आगे का रास्ता आसान था उन्हें बस चारों सस्पेक्ट की हैंडराइटिंग से लाशों के साथ मेरे लेटर की हैंडराइटिंग को मिलाना था पुलिस कच्ची सस्पेक्ट चंद्रकांत झा ही था लेकिन दिक्कत यह थी कि उसकी लोकेशन का कुछ पता नहीं था वह पुलिस से बचने के लिए बार बार अपने एड्रेस को बदल रहा था लेकिन पुलिस ने यह फिगर आउट कर लिया कि झा के चार मेन हाइड आउट्स यमुना विहार अलीपुर बरौला गांव और हैदरपुर में है उनका लास्ट क्लू यह था कि चंद्रकांत झा एक स्कूटर में फिट की गई रिक्शा चलाता है काफी मेहनत के बाद पुलिस ने चंद्रकांत झा को तब पकड़ा जब अलीपुर में अपने बच्चों के साथ हलवा खा रहा था पुलिस ने उसे पकड़ने के बाद उसके मकान की तलाशी भी ली जहां उन्हें खून से सने इच्छा को मिले चाकू पर लगे खून का सैंपल चंद्रकांत की सबसे लेटेस्ट विक्टिम दिलीप मंडल के ब्लेड से मैच कर गया था चंद्रकांत की हैंडराइटिंग भी एक पर्टिकुलर लेटर की हैंडराइटिंग से मिल गई थी जो उसने लाश के साथ तिहाड़ जेल के सामने छोड़ा था
इस तरह से दिल्ली के सबसे खूंखार और रूट लिए लिए में से एक अब दिल्ली के पुलिस के हाथ लग चुका था लेकिन अब बारी थी चंद्रकांत झा के मोटे को जानने की आखिर वो लोग कौन थे जिनका मदद करके चंद्रकांत झा ने तिहाड़ जेल के पास उनकी लाश को फीका था जैसे जैसे चंद्रकांत झा ने पुलिस को मदद और उनके पीछे के मकसद के बारे में बताना शुरू किया कुछ ऐसी बातें सामने आईं जिन्हें सुनकर कोई भी चौंक जाएगा पुलिस को सबसे पहले तो यह बात पता चली कि चंद्रकांत ने सिर्फ तीन मदद नहीं की है तीन लाशें तो सिर्फ तिहाड़ जेल के पास में मिली थी लेकिन उसके अलावा उसने कुछ और लोगों को भी मारा था इनमें से एक की लाश को उसने मुख मैनपुर के सीवेज ट्रेन के पास दो हज़ार तीन में फेंका था उसका एक और शिकार मंगू ओमपुरी नॉर्थ वेस्ट दिल्ली के पास एक सुलभ शौचालय के सामने मिला था चंद्रकांत ने एक विक्टिम की तो लाश के टुकड़े करके उन टुकड़ों को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट से लेकर बाकी जगहों पर भी फैलाया में सबसे हैरान कर देने वाली बात यह थी कि सभी विक्टिम्स या तो चंद्रकांत झा के दोस्त थे या फिर उसके साथ काम करते थे आखिर चंद्रकांत झा अपने ही साथियों को इस तरह मारकर पुलिस को मौके कर रहा था इसके लिए चंद्रकांत झा की बैक स्टोरी को जानना होगा
चंद्रकांत गोसाई गांव की मिडिल क्लास फैमिली से था उसके पिता राधिका झा इरीगेशन डिपार्टमेंट में काम करते थे और मां चंपा देवी एक स्कूल टीचर थी आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि चंद्रकांत जैसे सीरियल किलर के दो भाई खुद सीआरपीएफ और बिहार स्टेट पुलिस में है चंद्रकांत की मां अपनी नौकरी की वजह से ज्यादा टाइम घर पर बता नहीं पाती थी यह भी बताया जाता है कि उसकी मां काफी स्ट्रेट और गुस्सैल मिजाज की थी जिस वजह से चंद्रकांत को बचपन से ही प्यार नहीं मिला था पढ़ाई में भी चंद्रकांत का कोई खास इंटरेस्ट नहीं था जिसकी वजह से वह आठवीं क्लास से ही ड्रॉप लेकर दिल्ली में सब्जी बेचने आ गया था चंद्रकांत दिल्ली की आजादपुर मंडी में सब्जी बेचने का काम करने लगा था वो शुरू से ही गलत बातों को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं कर पाता था फिर चाहे वह गलत बात कितनी भी छोटी सी ही क्यों ना हो
सब्जी मंडी में उनका एक पंडित नाम का सुपरवाइजर उनसे दुकान लगाने के लिए काफी भारी पैसा लेता था चंद्रकांत को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई और एक दिन उसकी पंडित के साथ झड़प हो गई दोनों का झगड़ा इतना बढ़ गया कि चंद्रकांत ने एक तेज धार वाले चाकू से पंडित का हाथ काट दिया घबराया हुआ पंडित सीधे पुलिस के पास भागा और चंद्रकांत के खिलाफ कंप्लेंट दर्ज करवाई इस वजह से चंद्रकांत को अगले तीन साल जेल में काटने पड़े थे टाइम था जब चंद्रकांत का सामना हुआ हवलदार बलबीर सिंह से जिसने उसे कुछ ज्यादा ही टॉर्चर किया था बलवीर सिंह अक्सर बाकी कैदियों के सामने चंद्रकांत के सारे कपड़े उतरवा देता और बुरी तरह से पीटा था चंद्रकांत को बलवीर सिंह की वजह से जेल में काफी ही में लिए फेस करना पड़ा था जेल से निकलने के बाद चंद्रकांत पूरी तरह से बदल चुका था वह पुलिस से और सिस्टम से बदला लेने के बारे में ही सोचा करता था चंद्रकांत पहले एक बहुत ही सेंसिटिव इंसान हुआ करता था जो बिहार से आए बाकी इमिग्रेशन की मदद करता लेकिन अब वह एक बहुत वायलेंट इंसान बन चुका था इसी बीच चंद्रकांत की शादी भी हुई जिसके बाद उसके पांच बच्चे हुए लेकिन उसने अपनी बीवी और बच्चों को अपने साथ नहीं रखा उसे डर था कि पुलिस आकर उसकी बीवी बच्चों को भी परेशान करेगी चंद्रकांत अब भी बिहार से आए इमिग्रेशन से दोस्ती करके उनकी मदद करता था लेकिन उसे ऐसे लोगों से सख्त नफरत हो जाती थी जो से थोड़ा सा भी झूठ बोलते थे जिनका बर्ताव उसके हिसाब से अच्छा नहीं था चंद्रकांत का पहला शिकार पंडित था वहीं पंडित जिससे उसका झगड़ा हुआ था पंडित के कत्ल के बाद पुलिस ने उसे वापस अरेस्ट किया था लेकिन प्रॉपर एविडेंस न मिलने की वजह से वह छूट गया था इसके बाद उसने अपने सेल्फ डिफेंस के लिए कराते भी सीखा था पंडित की मर्डर के बाद कुछ वक्त तक चंद्रकांत की जिंदगी में सब कुछ एकदम नॉर्मल था लेकिन फिर एक और घटना हुई जिसने उसे एकदम से ट्रिगर करके उसके अंदर सूर्य है शैतान को जगा दिया था उसका एक साथी शेखर उसके साथ ही रहता था उसने चंद्रकांत को बताया था कि वह शराब को हाथ तक नहीं लगाता था लेकिन सच्चाई यह थी कि उसे ड्रिंक करने की आदत थी जब चंद्रकांत को यह पता चला कि शेखर ने उससे झूठ कहा था तब उसे बहुत गुस्सा आया और उसने सीधे जाकर शेखर से बात की शेखर को उस वक्त तक चंद्रकांत का गुस्सा मजाक लग रहा था चंद्रकांत ने उससे कहा कि वो से झूठ बोलने की सजा देगा शिखर ने इस बात को भी सीरियसली नहीं लिया था उसे हैरानी हो रही थी कि चंद्रकांत इतनी छोटी सी बात का इतना बड़ा इशू क्यों बना रहा है उसने मजाक मजाक में चंद्रकांत से कह दिया कि तुम मुझे जो चाहो सजा दे सकते हो उसे नहीं पता था कि उसका मजाक उस पर इतना भारी पड़ेगा उसी दिन चंद्रकांत ने शेखर का गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी जब उसने शेखर की लाश को देखा तब उसे बिलकुल भी गलत नहीं हुआ उल्टा उसे यह हत्या एक वर्ग ऑफ आर्ट लगी और उसने अपने पॉइंट एंड शूट कैमरे से शेखर की लाश की फोटो भी ली इसके बाद उसने बॉडी को सीवेज ट्रेन में ले जाकर फेंक दिया चंद्रकांत का दूसरा नून मदद था तीसरा कोण उसने किया था उमेश नाम की इंसान का जिसकी नौकरी उसी ने लगवाई थी वो बस उमेश की किसी बात पर झूठ बोलने की वजह से बुरी तरीके से ट्रिगर हो गया और उसकी हत्या कर दी इस बार चंद्रकांत एक स्टेप और आगे गया उसने उमेश कुमार ने के बाद लाश के टुकड़े भी किए उमेश की लाश थी जिसने उसने सबसे पहले तिहाड़ जेल के गेट नंबर एक के पास चिट्ठी के साथ छोडी थी उसके बाद चंद्रकांत दो साल तक एकदम शांत रहा लेकिन फिर दो हज़ार पाँच में उसने गुड्डू नाम के एक इंसान की हत्या सिर्फ इसलिए कर दी क्योंकि उसे गुड्डू का गांजा पीना पसंद नहीं था गुड्डू की लाश मंगोलपुरी के एक सुलभ शौचालय के पास मिली थी दो हज़ार छः में चंद्रकांत झा ने अमित मंडल नाम के अपने एक साथी की हत्या कर दी थी क्योंकि उसे शक था कि वह लडकियों पर बुरी नजर रखता है
अमित मंडल की लाश को दूसरी लाश थी जो पुलिस को तिहाड़ जेल के गेट नंबर तीन के पास मिली थी अमित मंडल को मारने के बाद ही चंद्रकांत ने पुलिसवालों का मजाक उड़ाने के लिए उन्हें फोन भी किया था अप्रैल दो हज़ार सात में चंद्रकांत ने उपेंद्र नाम के एक शख्स को सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि उसे शक था कि उसका अफेयर उसकी बेटी की किसी दोस्त के साथ है जब चंद्रकांत से बयान दिया गया तो उसने बताया कि उपेंद्र को मारने के बाद वह आराम से अपने कमरे में खून से सने फर्श पर बैठ गया और खाना खाते हुए उसकी लाश को घूरता रहा अपना खाना खत्म करने के बाद वह उठा और उपेंद्र की बॉडी को कई टुकड़ों में काटा बाद में उपेंद्र की लाश के कई टुकड़े दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट और बाकी जगहों पर फैले मिले थे इससे भी शॉकिंग इंसिडेंट जस्ट एक महीने बाद मई दो हज़ार सात में हुआ जब चंद्रकांत ने अपने दोस्त दिलीप को सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि उसने उसके कमरे में नॉनवेज खाकर झूठी थाली को वहीं मेज पर छोड़ दिया दिलीप की लाश वह तीसरी लाश थी जिसे चंद्रकांत ने तिहाड़ जेल की बाउंड्री के पास छोड़ा था ये सिर्फ दो मदद से हैं जिनके बारे में पब्लिक डोमेन में इन्फॉर्मेशन है
चंद्रकांत के गांव वालों के हिसाब से तो उसने और भी कई सारे खून की हैं गोसाई गांव जहां चंद्रकांत का बचपन बीता वहां के लोग आज भी उसके खौफ में जीते हैं चंद्रकांत के केस में सबसे खास बात यह थी कि किसी भी मर्डर की वजह बहुत बड़ी नहीं थी उसने बहुत ही छोटी छोटी बातों के लिए अपने दोस्तों का खून कर दिया ऐसी बातें हैं जिन्हें हमारे आपके जैसे नॉर्मल लोग इग्नोर करके लाइफ में आगे बढ़ जाते हैं चंद्रकांत ने अपने एक कमरे वाले मामूली से घर में इतनी भयानक हत्याएं की उनकी लाश की फोटो ली और उन्हें मारने के बाद वहीं बैठकर खाना भी खाया ये सारी साइको पहले टेंडेंसी है और इससे यही पता चलता है कि वह कितना वायलेंट और मेंटली से इंसान था चंद्रकांत ने किन किन लोगों का खून किया इसका पता तो फिर भी बहुत से लोगों को है लेकिन उसके हाथों से बचने वाले लोगों की बहुत कम बात की जाती है इन्हीं बचने वालों में से एक था जाधव जिसकी चंद्रकांत से अच्छी जान पहचान थी चंद्रकांत ने एक दिन जाधव को अपने घर पर बुलाया जब जाधव अंदर गया तो अंदर का नजारा देखकर बुरी तरह से हैरान रह गया उसने देखा कि चंद्रकांत के कमरे में तीन लोग रस्सियों से बने हुए थे उन सबकी आँखों में दर्द साफ दिख रहा था चंद्रकांत जाधव से कहा कि उसे इन तीनों को मारने में उसकी हेल्प चाहिए ज्यादा पहले तो पूरी तरह से ब्लैंक हो गया लेकिन उसके बाद में समझ में आ गया कि अगर उसने चंद्रकांत की बात से एग्री नहीं किया तो उसका हाल भी इन तीनों जैसा हो सकता है ज्यादा के दिमाग में तब एक आइडिया आया उसने कहा कि उसे बहुत भूख लगी है और वो चंद्रकांत की मदद तभी कर पाएगा जब उसे खाना मिलेगा चंद्रकांत उसके लिए खाना लेने जैसे ही बाहर गया जाधव ने फुर्ती दिखाई और उन तीनों लोगों को आजाद कर दिया
वह सभी लोग अपनी जान बचाकर उसके घर से भागे अब चंद्रकांत जेल में हैं लेकिन अब भी जाधव और उसके साथ भागे लोगों के मन में उसका डर एकदम ताजा है उन्हें अभी ऐसा लगता है कि चंद्रकांत जेल से छूटा तो पक्का उन्हें मार देगा चंद्रकांत की हिम्मत आखिर इतनी कैसे बढ़ गई थी कि उसने खून तो किए ही लेकिन साथ ही जस्टिस सिस्टम को भी एक तरीके से खुला चैलेंज दे दिया इसमें थोड़ा कॉन्ट्रिब्यूशन हमारे जस्टिस सिस्टम का भी है चंद्रकांत झा को लगता था कि पुलिस डिपार्टमेंट बहुत ही नाकारा है और उसे पकड़ नहीं सकता जिसकी वजह से वह काफी ओवर कॉन्फिडेंट हो गया था जब कोर्ट में उसका ट्रायल हुआ तब भी पुलिस की एक बड़ी गलती की वजह से उसे जमानत मिल गई गलती यह थी कि पुलिस को जब लाश के पास से लेटर मिला तो उसे सील बंद नहीं किया गया था वह लेटर बस एक पुलिस वाले के हाथ से दूसरे पुलिस वाले के हाथ में घूम रहा था उन्होंने लेटर फॉरेंसिक डिपार्टमेंट में भी ऐसे ही भेज दिया था
यहां तक कि चंद्रकांत झा के खिलाफ सात लोगों के खून की जो चार्जशीट फाइल की गई थी उसमें भी लेटर का कहीं कोई मेंशन नहीं था इस वजह से कोर्ट ने चंद्रकांत को जमानत दे दी थी लेकिन इस बार पुलिस वाले उसे बचकर जाने देने के मूड में नहीं थे फिर उन्होंने एक बार फिर से आखिरी विक्टिम दिलीप मंडल के ब्लड सैंपल की बेसिस पर वापस से अर्जी डाली अदालत को भी एविडेंस काफी ठोस लगा और उन्होंने चंद्रकांत की जमानत को खारिज करके साथ मर्डर का उसके ऊपर मुकदमा चलाया पाँच फरवरी दो हज़ार तेरह को लोवर कोर्ट ने चंद्रकांत झा को फांसी और उम्रकैद की सजा सुनाई थी लेकिन बाद में जब यह मामला ऊपरी अदालत में पहुंचा तब उसकी सजा को पूरी तरीके से उम्रकैद में बदल दिया गया अब चंद्रकांत झा उसी तिहाड़ जेल के अंदर है जिसके बाहर कभी उसने लाशों को फेंक कर पुलिस को बड़ा परेशान किया था इसके से यह तो जाहिर है कि चंद्रकांत के अंदर बचपन से ही बहुत सीनियर मेंटल इश्यूज थे जब वह दिल्ली गया और उसे जेल के अंदर खराब कंडीशंस को फेस करना पड़ा तो यह इशूज और भी ज्यादा एम्पलीफायर हो गए छोटी छोटी बातों पर अपने दोस्तों या साथ में काम करने वालों को मार देना इसी बात का एग्जाम्पल है कि चंद्रकांत का टॉलरेंस लेवल बहुत कम था और जब कोई भी उसका कहना नहीं मानता था तो उसे इतना गुस्सा आ जाता था कि वह उसकी हत्या तक कर देता था जेल में पंद्रह साल बिताने के बाद सोलह अगस्त दो हज़ार तेईस को चंद्रकांत झा को नब्बे दिन की पैरोल पर रिहा किया गया था चंद्रकांत ने कहा था कि चार बेटियों का पिता होने के नाते उसे अपनी सबसे बड़ी बेटी के लिए योग्य वर ढूंढना है जिसकी वजह से उसका बाहर जाना जरूरी है जितने भी दिन वह बाहर था पुलिस ने उस पर कई तरह की बंदिशें लगाई जो की जरूरी भी था इसके से यह समझ में आता है कि सिर्फ मिडिल क्लास या अपर क्लास ही मेंटल इश्यूज का शिकार नहीं होते गरीबी और खराब कंडीशंस की वजह से लेबर क्लास को भी मेंटल प्रॉब्लम हो जाती हैं जिन्हें टाइम रहते रिजल्ट करना बहुत जरूरी है ताकि दुनिया में कोई और चंद्रकांत झा न बनें दोस्तो क्या यह सजा चंद्रकांत के लिए काफी है आपको क्या लगता है
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