एक गुरु का एक से बहुत दुखी था जब भी वे भिक्षा मांगने के लिए आसपास के गांवों में जाता तो उसे वहां दुख दर्द तकलीफ दिखाई देते हैं यह सब देखकर वह बेचैन रहने लगा मैं ईश्वर से प्रार्थना करता कि सबको सुख सुखदेव खुशी दे शांति दे एक दिन उसके मन में यह प्रश्न उठा कि क्यों इस दुनिया को बनाने वाले ने इन सबको दुख दिया है क्यों नहीं वह सबको सुख दे देता है यही प्रश्न लेकर वे अपने गुरु के पास पहुंचा और बोला हे गुरुदेव इस दुनिया के लोग इतनी दुखी क्यों है क्यों चारों तरफ दुख ही दुख है इस दुनिया को बनाने वाला क्यों नहीं इन सबको सुख और खुशियां दे देता मैं बहुत दुखी और बेचैन हूं इन सबके दुख देखकर मैं जब आसपास के गांवों में भिक्षा मांगने जाता हूं तो मुझे वहां दुख और तकलीफ के अलावा कुछ और दिखाई नहीं देता हर इंसान किसी न किसी बात से दुखी है परेशान हैं बेचैन हैं गुरु ने कहा इन सबको सुखी दिया गया है लेकिन इन्हें अपना सुख दिखाई नहीं देता तो इसमें कोई क्या कर सकता है ने कहा गुरुदेव अगर सुख होगा तो सुख दिखाई देगा और अगर दुख होगा तो दुख दिखाई देगा लोग इतने नासमझ तो नहीं कि सुख होने के बाद भी दुखी होने का प्रयास करेंगे भला सुख दुख कैसे बन सकता है दुख होगा तभी तो लोग दुखी और परेशान हैं यह सुन गुरु ने एक हल्की सी मुस्कान दी और कहा मैं जानता हूँ कि तुम एक बहुत अच्छे मूर्तिकार हो तुम एक काम करो इन लोगों की खुशी के लिए इन लोगों के सुख के लिए एक ऐसी मूर्ति बनाओ जिसे देखकर यह सब अपना दुख भूल जाए चाहे थोड़े समय के लिए ही सही शिष्य ने कहा ठीक हे गुरुदेव मैं एक ऐसी मूर्ति बनाऊंगा जिसे अगर कोई देखें तो वह अपने दुख और दर्द भूल कर खुश हो जाए शिष्य ने तीन महीने तक उस मूर्ति पर काम किया वह दिन रात पूरी लगन से उस मूर्ति को तरसता रहा तीन महीने बाद जब उसकी मूर्ति पूरी तरह से बनकर तैयार हो गई तो वह गुरु के पास आया और बोला हे गुरुदेव आपके कहे अनुसार मैंने मूर्ति बना ली है जो भी इंसान उस मूर्ति को देखेगा अपने दुख और दर्द भूल कर खुश हो जाएगा आप मेरे साथ चलें और उस मूर्ति को देखकर बताएं क्या मैंने सही काम किया है गुरु शिष्य के साथ उस मूर्ति के पास पहुंचे मूर्ति सचमुच बहुत सुंदर थी अद्भुत थी शिष्य ने एक सुंदर लड़की की मूर्ति बनाई थी जो डिब्बे दिख रही थी देवी दिख रही थी उसकी मुस्कान ऐसी थी कि कोई भी उसमें खो जाता और अपने दुख दर्द भूल कर प्रसन्न हो जाता है गुरु ने कहा बहुत खूब बहुत अद्भुत मूर्ति बनाई है तुमने अवश्य ही यह लोगों को उनके दुख से बाहर निकालने में उनकी मदद करेगी परन्तु मैं चाहता हूं कि तुम इस मूर्ति के चेहरे पर कहीं पर भी एक ऐसा निशान बना हूं जो दिखाई न दे शिष्य ने पूछा लेकिन क्यों गुरुदेव गुरु ने कहा ये मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा शिष्य ने उस मूर्ति की आंख के ऊपर भौहों में एक छोटा सा निशान बना दिया जो दिखाई नहीं दे रहा था गुरु ने कहा बहुत अच्छे अब इस मूर्ति को गांव के बाहर वाली सड़क पर रख देते हैं उस मूर्ति को गांव के बाहर वाले सड़क के किनारे रख दिया गया और गुरु शिष्य कुछ दूरी पर जाकर खड़े हो गए गांव वाले उस रास्ते से बाहर आने लगे जो भी उस मूर्ति को देखता वह दुखी हो जाता एक जवान व्यक्ति उस मूर्ति को देख रहा था उसने बड़े ध्यान से उस मूर्ति को देखा फिर अफसोस करता हुआ आगे बढ़ गया रास्ते में गुरु और शिष्य ने उसे रोका गुरु ने कहा तुम बड़े दुखी दिखाई पड़ रहे हो क्या हुआ व्यक्ति ने कहा वहां एक मूर्ति रखी है बड़ी सुंदर उठती है ऐसी कि देखो तो देखते ही रह जाओ और अफसोस उसमें एक कमी है मूर्तिकार ठीक नहीं था उसने मूर्ति की आंख के ऊपर एक निशान छोड़ दिया है इसलिए मैं बहुत दुखी हूं काश अगर वह निशान नहीं होता तो मूर्ति कितनी सुंदर होती शिष्य ने कहा और वे निशांत दिखाई भी नहीं दे रहा तुमने कैसे देखने वाला व्यक्ति ने कहा क्या बात करते हो मेरे तो पहली नजर ही निशान पर पड़ी थी यह कह कर वह व्यक्ति वहां से चला गया एक दूसरा व्यक्ति उस मूर्ति को देख रहा था वहीं भी दुखी होता हुआ आगे बढ़ गया गुरु और शिष्य ने उस व्यक्ति को भी रोका और उससे पूछा क्या हुआ तुम इतने दुखी क्यों लग रहे हो उस व्यक्ति ने कहा वह एक बहुत सुंदर मूर्ति है और मूर्तिकार बेकार आदमी था उसने मूर्ति के चेहरे पर एक निशान छोड़ दिया है जिसने मेरा मन खराब कर दिया है जिससे ने पूछा और वह निशांत दिखाई भी नहीं दे रहा तुमने कैसे देख लिया उस व्यक्ति ने कहा अरे कैसी बात करते हो भाई मुझे तो पूरी मूर्ति में वह निशान दिखाई पड़ा शिष्य ने कहा क्या तुम उस निशान को छोड़कर सिर्फ मूर्ति नहीं देख सकते हैं क्या हुआ अगर उसमें एक छोटा सा निशान हैं शेष मूर्ति तो अच्छी हिना व्यक्ति ने कहा हां मूर्ति तो अद्भुत है डिब्बे है लेकिन अगर उसमें वह निशान नहीं होता तो बस इसीलिए में दुखी हूं धीरे धीरे सभी गांव वालों ने वह मूर्ति देखी और सभी दुखी हो गए शाम होने पर आखिर में राजा भी अपने रथ में सवार होकर वहां से निकला उस मूर्ति को देखकर अचंभित था कि इतनी अद्भुत मूर्ति रास्ते पर क्यों खड़ी है इसी तो उसके महल में होना चाहिए था लेकिन थोड़ी देर में वह भी दुखी हो गया और उस मूर्ति को छोड़कर आगे बढ़ गया गुरु और शिष्य ने उस को रोका गुरु ने राजा से पूछा हे राजन अब दुखी क्यों है क्या मूर्ति सुंदर नहीं है राजा ने कहा मूर्ति तो डिब्बे पर एक वह निशान जो मूर्ति कि आपके ऊपर है वह सही नहीं है मूर्तिकार ने गलती करती है इसीलिए मैं दुखी हूं काश अगर वह एक निशान नहीं होता तो यह मूर्ति मेरे राज दरबार की सुध बढ़ा रही होती है यह कहकर राजा भी वहां से चला गया गुरु और शिष्य दोनों मूर्ति के पास पहुंचे शिष्य ने बड़े ध्यान से मूर्ति को देखा मूर्ति बहुत सुंदर थी उसमें कोई कमी नहीं थी और ना ही वह निशान दिखाई दे रहा था जिससे बड़ा अचंभित था उसने गुरु से कहा गुरुदेव मूर्ति में तो कोई कमी नहीं है पूरी मूर्ति अद्भुत है और दिव्य स्वरूप है एक छोटा सा निशान ही तो है और वह भी ऐसा कि दूर से देखो तो दिखाई न दें बहुत पास आकर देखोगे तब भी बहुत ध्यान देने पर ही दिखता है क्रिया सारे लोग उसे एक छोटे से निसान के पीछे ही क्यों पड़े हैं इन्हें बाकी की इतनी सुंदर मूर्ति क्यों नहीं दिख रही गुरु ने उत्तर देते हुए कहा तुम पूछ रहे थे ना कि दुनिया बनाने वाले ने दुख क्यों दिया उसने दुख नहीं दिया उसने तो इन्हें सुख देने की सारी व्यवस्था की थी और यह सब पूरी मूर्ति नहीं देखते यह कमी देखते हैं यह पूरा सुख नहीं देखते है उसमें एक छोटा सा दुख ढूंढने में लगे रहते हैं
जैसे तुम्हारी मूर्ति में इन्होंने सुख की जगह दुख ढूंढ लिया अर्थात मूर्ति की दिव्यता देखकर खुश होने की बजाय एक छोटी सी कमी देखकर दुखी हो गए ऐसे ही इनके पास सुख ही सुख है लेकिन यह उस एक दुख में खोये रहते हैं जिसका कोई वजूद ही नहीं है जैसी तुम्हारी मूर्ति में उसे छोटे से निशान का कोई वजूद नहीं है शिष्य ने प्रश्न किया लेकिन यह ऐसा क्यों करते हैं गुरुदेव गुरु ने कहा बेचैन मन के कारण यह सब बेचैन है यह कभी भी पूरी मूर्ति देखते ही नहीं कि कभी भी अपना पूरा सुख देखते ही नहीं यह देखते हैं एक छोटी सी कमी यह सुख के बीच दुख देखते हैं यह पूरी दुनिया विराट सुख को छोड़कर छोटे छोटे दुखों को पकड़कर बैठी रहती है वहीं उनकी जिंदगी है और वहीं उनकी दुनिया है अगर यह ध्यान से देखें तो बनाने वाले ने हर चीज इनके सुख के लिए ही बनाई है ये नदियां यह पहाड यह हरी भरी प्रकृति स्वादिष्ट फल और भोजन रिश्ते नाते धन संपदा हर एक चीज इनके सुख के लिए ही बनाई गई है लेकिन यह हर चीज में अपने लिए दुख ढूंढ ही लेते हैं और दुखी होते रहते हैं जिस प्रकार इस मूर्ति को बनाने वाले को सभी लोग दोष दे रहे थे उसी प्रकार इस दुनिया को बनाने वाले को भी ये लोग दोष देते हैं जबकि इसमें गलती किसकी है मूर्तिकार की यह मूर्ति को देखने वाले की शिष्य ने कहा गुरुदेव इन्हें सुख मिलेगा क्या कोई ऐसी व्यवस्था नहीं हो सकती है गुरु ने कहा मैंने बताया ना सुख तो इन्हें पहले से ही मिला हुआ है इन्हें वह एक छोटी सी कमी छोड़कर पूरी मूर्ति देखनी हो तो तभी तो इन्हें अपना पूरा सुख दिखाई पड़ेगा से ने कहा और इसके लिए क्या करना होगा गुरुदेव अपने ध्यान को छोटी सी कमी से हटाकर पूरी मूर्ति पर लगाना होगा और यह तभी संभव होगा जब वह अपने बेचैन मन से छुटकारा पाने की कोशिश करें अपनी समझ को बढ़ाएं ध्यान करें ध्यान से मन की बेचैनी कम होती है और शांति आती है और एक शांत मन ही पूरी मूर्ति देख सकता है एक छोटी सी कमी नहीं केवल बेचैन मन ही कर्मियों को ढूंढता है और दुखी रहता है
जिससे ने कहा मैं आपकी बात समझ गया हूँ गुरुदेव
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