दोस्तों क्या भाग्य में लिखा हुआ मिट सकता है
यह सवाल सदियों से लोगों को परेशान करता रहा है इसका कोई जवाब नहीं है जो सभी को संतुष्ट करें क्योंकि यह व्यक्तिगत विश्वास और अनुभव पर निर्भर करता है कुछ लोग मानते हैं कि भाग्य पहले से ही निर्धारित है और इसे बदला नहीं जा सकता है वे मानते हैं कि जो कुछ भी हमारे साथ होता है को एक बड़ी योजना का हिस्सा है और हम इसे नियंत्रित नहीं कर सकते हैं अन्य लोग मानते हैं कि हमारे पास अपने भाग्य को चुनने की शक्ति है वे मानते हैं कि हमारे विचार कर निर्णय हमारे जीवन को आकार देते हैं आज की सुंदर कहानी में आपको पता चलेगा कि जो कुछ भी हमारे जन्म से पहले लिखा जा चुका होता है क्या उसको मिटाया जा सकता है अगर आप यह सब कुछ जानना चाहते हैं तो इस सुंदर कहानी को कृपया अंत तक जरूर सुनें दोस्तों ये कहानी बड़ी ही शिक्षाप्रद महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक है मेरा आपसे निवेदन है की कहानी के अंत तक हमारे साथ बने रहे अब बिना देरी करते हुए कहानी शुरू करते हैं प्राचीन समय की बात है एक गांव में मोहन नाम का गरीब किसान रहता था उसके परिवार में सिर्फ है और उसकी पत्नी रहती थे पर बहुत दुखी रहते थे उनके दुखी रहने का एक कारण यह भी था कि काफी समय से उनके आंगन में बच्चे की किलकारी नहीं गूंज रही थी
आखिर बहुत समय के बाद किसान घर एक लड़के का जन्म हुआ किसान और उसकी पत्नी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था आसपास के सभी लोग बधाई देने आ रहे थे इसी बीच एक सुबह उनके घर के बाहर से भिक्षा मांगने की आवाज आई कि आवास किसी और की नहीं बल्कि एक महात्मा की थी खुशी के इस मौके पर किसान ने महात्मा जी को अंदर बुलाया और उन्हें बैठने के लिए आसन दिया कुछ देर बातचीत के बाद किसान ने महात्मा जी से विनती करते हुए कहा महात्मा जी हमारे घर में बहुत समय बाद बच्चे का जन्म हुआ है आप कृपया करके इसका नामकरण कर दीजिए महात्मा बच्चे को गोद में लेकर उसे प्यार से सहला रहे थे तभी उसकी नजर बच्चे की बाजू पर पड़े वहां एक अजीबोगरीब जिन्हें बना हुआ था जो उसने पहले कभी नहीं देखा था क्यों न किसी राजा के मुकुट जैसा दिख रहा था और इसके चारों तरफ अनेक अलंकृत रेखाएं खींची हुई थी किसान में महात्मा के चेहरे पर घबराहट देखी और पूछा महात्मा जी क्या बात है आप इतना परेशान क्यों नजर आ रहे महात्मा ने कहा बेटा मैं परेशान नहीं हूं बल्कि मैं तो बहुत खुश हूं क्योंकि तुम्हारा बेटा बहुत किस्मत वाला है तुम्हारे बेटे की किस्मत में राजयोग लिखा है किसान ने कहा महात्मा जी मैं आपकी बात समझा नहीं आप क्या कहना चाहते हो महात्मा ने कहा बेटा तुम्हारा पुत्र एक दिन राजा बनेगा इसका विवाह सोलह वर्ष की आयु में स्वराज्य की राजकुमारी के साथ होगा और फिर यह इस नगर का राजा बन जाएगा महात्मा की बात सुनकर मोहन बहुत खुशी हुआ जब गांव के लोगों को पता चला कि मोहन का बेटा एक दिन इस नगर का राजा बनेगा तो सभी लोग उसको देखने के लिए आने लगे एक दिन की बात है उस नगर के राजा हिरण का शिकार करने के लिए जंगल में गया था राजा को शिकार का बड़ा शौक था और वह अक्सर जंगल में जाता था राजा हिरण का पीछा करता करता काफी दूर जंगल में निकल गया हिरण बहुत तेज था और राजा उसे पकड़ नहीं पा रहा था धीरे धीरे सूरज ढलने लगा और शाम होने लगे राजा को अब वापस घर जाने का रास्ता नहीं मिल रहा था जंगल में खो गया था
राजा को प्यास भी लगने लगी थी उसने आसपास कोई नदी या तालाब दूंगा लेकिन उसे कुछ नहीं मिला राजा थक कर हार मान चुका था और उसे डर लगने लगा था राजा पानी की तलाश में भटकता हुआ उसी गाँव में पहुँच गया जहाँ मोहन रहता था तभी राजा की नजर एक झोपडी पर पड़े
राजा झोपड़ी के अंदर गया उसने देखा वहाँ एक बूढ़ी अम्मा विश्राम कर रही थी राजा ने बुढ़िया से पानी मांगा बुढ़िया ने राजा को रोकने के लिए कहा और अपनी कुटिया के अंदर से पानी लेने के लिए चली गई अम्मा ने पानी लाकर राजा को दिया राजा ने पानी पिया और अपनी प्यास बुझाई
पानी पीने के बाद राजा ने देखा कि बहुत सारे लोग बाहर इकट्ठे होकर जा रहे थे राजा ने बूढ़ी अम्मा से उन लोगों के बारे में पूछा तो अम्मा ने कहा ये सभी मोहन के घर जा रहे हैं मोहन के यहां एक बहुत ही किस्मत वाले बच्चे का जन्म हुआ है और एक महात्मा ने उसके बारे में भविष्यवाणी की है राजा ने पूछा अम्मा ऐसी कौन सी भविष्यवाणी की है जिसके कारण सभी लोग वहां जा रहे हैं बुढ़िया मारने का महात्मा ने बताया है कि जब उनका बेटा सोलह साल का होगा
तो उसका विवाह इस राज्य के राजा की पुत्री के साथ होगा और उसका पुत्र इस राज्य का राजा बनेगा महात्मा की बात सुनकर राजा को बहुत गुस्सा आया कि आखिर एक मामूली किसान का बेटा उसकी पुत्री के साथ विवाह कैसे कर सकता है राजा ने अम्मा से कहा मैं ही इस राज्य का राजा है और आप क्या सोचते हो एक मामूली किसान के बेटे के साथ में अपनी बेटी की शादी कर दूंगा
बूढ़ी अम्मा ने कहा राजन जो इस बच्चे के भाग्य में लिखा है उसे कोई नहीं मिटा सकता राजा को अपनी ताकत पर बहुत घमंड था उसने कहा बूढ़ी अम्मा मैं भगवान का लिखा हुआ आपको मिटाकर दिखाऊंगा राजा की बात सुनकर बूढ़ी अम्मा शांत रहें उनकी आंखों में आंसू थे जैसे में राजा की बातों को लेकर हल्के में ले रही हूं राजन उन्होंने धीरे से कहा तुम्हें अपनी ताकत पर इतना घमंड नहीं करना चाहिए यह तो प्रकृति का नियम है कि जो ऊंचा है व एक दिन नीचे भी आता है तुम भी हम सब की तरह ही एक इंसान हो और भगवान की इच्छा के बिना तुम कुछ भी नहीं कर सकते हैं इतना सुनने के बाद राजा ने बूढ़ी अम्मा को प्रणाम किया और वापस अपने महल की ओर चला गया रात को राजा को नींद नहीं आ रही थी
यही सोच रहा था कि किसी भी हालत में उस महात्मा की भविष्यवाणी को सच नहीं होने देना है
अगले दिन राजा अपना भेष बदलकर मोहन के गांव में पहुंच गया लोगों से पूछता पूछता राजा मोहन के घर पहुंचा राजा ने मोहन के घर के बाहर जाकर उसे आवाज लगाई मोहन उसकी आवाज सुनकर घर से बाहर आया और उससे पूछा आप कौन हो और किसलिए आए हो राजा ने कहा मैं एक व्यापारी हूं और मेरे खुद के कपड़े का व्यापार है और पास के गांव में रहता हूँ मैंने लोगों से सुना है कि तुम्हारे घर में एक तकदीर वाला बच्चा पैदा हुआ है और उसकी किस्मत में राज योग लिखा हुआ है है वह बड़ा होकर इस नगर का राजा बनेगा मोहन ने कहा हां आपने सही सुना है राजा ने मोहन से कहा अगर तुम बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ मोहन ने कहा हां सेठ जी बोलो क्या बात है राजा ने कहा तुम अपना बच्चा मुझे दे दो इसके बदले में मैं तुम्हें बहुत सारा धन दूंगा और तुम्हारे बच्चे का पालन पोषण भी करूंगा मोहन की पत्नी ने कहा नहीं जी में अपना बच्चा आपको नहीं दे सकती राजा ने कहा तुम एक मामूली किसान हो तुम अपने बच्चे का पालन पोषण अच्छी तरह से कैसे कर सकोगे मोहन ने व्यापारी की बात सुनकर का जी आप ठीक कहते हो हम इस बच्चे का पालन पोषण अच्छी तरह से नहीं कर सकेंगे मोहन की बात सुनकर उसकी पत्नी ने व्यापारी से कहा ठीक है मैं आपको अपना बच्चा देने के लिए तैयार हूं लेकिन जब यह सोलह साल का हो जाएगा तब आप मुझे से वापस कर देना राजा ने कहा हाँ ठीक है जब तुम्हारा बच्चा सोलह साल का हो जाएगा तुम्हें इसे तुम्हें वापस करने आ जाऊंगा यह कहकर राजा ने बच्चे को ले लिया और वहां से चला गया राजा अपने साथ बच्चे को लेकर एक नदी पर पहुंचा राजा ने सोचा था कि वे बच्चे को नदी में छोड देगा और उसकी मृत्यु हो जाएगी लेकिन बच्चे का मासूम चेहरा देखकर उसकी हिम्मत नहीं हुई बहुत सोचने के बाद राजा ने लकडी का एक संदूक लिया और बच्चे को संदूक में बंद करके पानी में बहा दिया राजा ने सोचा संदूक गहरी नदी में जाकर अपने आप ही डूब जाएगा और यह बच्चा मर जाएगा यह सोचकर राजा निश्चित होकर वापस राजमहल में चला गया कि अभी बच्चा वापस नहीं आएगा और मेरी बेटी के साथ इसकी शादी भी नहीं होगी मैंने भाग्य का लिखा हुआ मिटा दिया उधर संदूक बहता हुआ एक नदी के किनारे पर पहुंचा जहां पर एक धनवान सेट सूर्य देवता को जल चढ़ा रहे थे उस सेठ ने जब संदूक को खोल कर दी देखा तो उसके अंदर एक बच्चे को देखकर वह हैरान हो गए उस सेठ की कोई संतान नहीं थी सेट उस बच्चे को अपने घर ले गया फीट की पत्नी बच्चे को देखकर बहुत खुश हूं उसने जब सेट से पूछा कि यह बच्चा किसका है तो सेठ ने उसको बच्चे के बारे में बताया कि कैसे वह उसे नदी में बहता हुआ मिला सेठ और उसकी पत्नी ने बच्चे के लिए भगवान को हाथ जोड़कर धन्यवाद किया तब वह बच्चा सेठ के घर में पलने लगा सेठ ने उस लड़के का नाम रखा था इसी तरह धीरे धीरे सोलह साल बीत गए वीर बहुत ही समझदार और बुद्धिमान था एक दिन भीड़ को अध्यापक पढ़ा रहा था अध्यापक जो कुछ भी पूछता भी तत्काल उसका जवाब दे देता है यह देखकर अध्यापक ने भीड़ को कहा तुम तो बहुत ही समझदार और ज्ञानी हो तुम आगे चलकर बहुत बड़े आदमी बनोगे
अध्यापक वीर की प्रशंसा कर रहा था कि तभी वहां से वही राजा गुजर रहा था जो किसी दूसरे राज्य में किसी काम से जा रहा था राजा ने जब भीड़ की तरफ देखा तो वह वहीं पर रुक गया राजा ने भीड़ से पूछा बेटा तुम कौन हो और कहां रहते हो और तुम्हारे पिताजी का नाम क्या है
भीड़ ने कहा महाराज मैं सेट पर का पुत्र यह पूछकर राजा वहां से चला गया अपना कार्य करने के पश्चात राजा जब वापस आया तो वह सेट पन्ना के घर गया और उसने पन्ना से कहा तुम्हारा बेटा बहुत ही समझदार और बुद्धिमान है छेद पन्ना में राजा की बात सुनकर कहा महाराज मैं उसका असली पिता नहीं हूं मैंने तो उसे सिर्फ पाला है लेकिन वह मेरे लिए बेटे से भी बढ़कर है राजा ने सेट पन्ना से पूछा क्या यह लड़का आपका पुत्र नहीं है तो फिर यह लड़का आपको कहां से मिला
फिर सेट पन्ना ने राजा को सारी कहानी सुनाई कि कैसे वह उसे बहते हुए पानी में एक संदूक से मिला था जब राजा ने सेट पन्ना की बात सुनी तो वह चौंक गया राजा समझ गया था कि यह बच्चा वही है जिसे उसने सोलह साल पहले नदी में बहा दिया था राजा और सेट पन्ना अभी बातें कर ही रहे थे कि वहां पर वीर आ गया राजा ने भीड़ को देखा तो उसने सीट पन्ना से कहा सेठ जी मुझे आगे किसी काम से जाना है आप अपने बेटे के हाथों मेरी एक चिट्ठी महारानी तक पहुंचा दो तो मैं उसको सोने की मोहरें दूंगा पीठ ने यह सुनकर राजा से कहा था महाराज क्यों नहीं मैं आपकी चिट्ठी जरूर पहुंचा दूंगा राजा ने चिट्ठी मैं चुपचाप एक संदेश लिखा और चिट्ठी के ऊपर मुहर लगा दी और चिट्ठी भीड़ को पकड़ा दी और कहा बेटा या लोहा यह रानी तक पहुंचा देना पीर चिट्ठी लेकर चला गया व चलते चलते घने जंगल से गुजर रहा था कि वह रास्ता भटक गया उसे रास्ता ढूंढते ढूंढते रात हो गई रात गुजारने के लिए कोई जगह ढूंढने लगा तभी उसकी नजर एक झोपड़ी के ऊपर पड़ी भीड़ ने सोचा मैं रात यहीं पर बिठा लेता हूं यह सोचकर वीर घोडे से नीचे उतरा और झोपड़ी के अंदर चला गया जब भीड़ अंदर गया तो उसने देखा कि एक बूढ़ी औरत खाना बना रही थी बूढ़ी औरत ने भीड़ को देखा तो से पूछा बेटा तुम कौन हो और बिना इजाजत अंदर क्यों आए हो अपने बारे में बताया कि वह रास्ता भटक गया है इसलिए रात गुजारने के लिए यहां पर आया है
वीर की बात सुनकर बूढ़ी औरत को उसके ऊपर दया आ गई लेकिन फिर बूढ़ी औरत ने भीड़ से कहा बेटा तुम्हारा यहां पर रुकना ठीक नहीं है
क्योंकि यह डाकुओं का अड्डा है अभी कुछ ही देर में डाकू आने वाले हैं यदि उन्होंने तुम्हें यहाँ देख लिया तो तुम्हारे लिए परेशानी खड़ी हो जाएगी
भीड़ ने कहा लेकिन इतनी भयानक रात में में कहीं और जा भी नहीं सकता है अगर मैं बाहर गया तो जंगली जानवर मुझे खा जाएंगे इससे अच्छा है मैं यहां कोने में जाकर लेट जाता है यह कह कर वीर कोने में जाकर लेट गया कुछ समय के बाद डाकू अपने घर वापस आए डाकुओं ने जब घोड़े को बाहर देखा तो भीड़ के बारे में बूढ़ी माता से पूछा बूढ़ी माता ने उनको बताया इसका नाम भी है यह बहुत ही नेक दिल बच्चा है और यह राजा के काम से राज महल जा रहा है जब डाकुओं ने यह सुना तो उन्हें कुछ संदेह हुआ वे राजा की हरकतों के बारे में जानते थे इसलिए उन्होंने भीड़ की जेब से चिट्ठी निकाली और उसे पढ़ने लगे जैसे ही डाकुओं ने चिट्ठी पढ़ी तो वह सब समझ गए बूढ़ी माता ने उनसे पूछा चिट्ठी में क्या लिखा है उनमें से एक डाकू ने बताया चिट्ठी में लिखा है कि जैसे ही लड़का तुम्हारे पास पहुंचे इसको उसी समय मरवाकर कहीं दूर दफना देना यह काम मेरे पहुंचने से पहले हो जाना चाहिए
बूढ़ी माता में जब यह बात सुनी तो बोली यह राजा कितना दोस्त है जिसके हाथों चिट्ठी भिजवा रहा है उसी को मरवाने का आदेश भी दे रहा है
यह सोचकर बूढ़ी माता ने सोचा कि मुझे इस मासूम को बचाना चाहिए उसने डाकुओं से कहा तब डाकुओं ने दूसरी चिट्ठी लिखकर उस चिट्ठी से बदल दी और वापस वीर की जेब में रख दी इसके बाद डाकू वहां से चले गए सुबह होते ही भी उठा और बूढ़ी माता को धन्यवाद देकर वहां से चला गया कुछ समय के बाद ही राजमहल पहुंच गया और उसने चिट्ठी महारानी को दे दें महारानी ने चिट्ठी पढ़ी तो चिट्ठी में लिखा था यह लड़का बहुत ही बुद्धिमान और ज्ञानी है की राजकुमारी से विवाह करने लायक है इसलिए मेरे आने से पहले ही तुम इसका विवाह राजकुमारी से कर दो महारानी सोचने लगी कि आखिर ऐसे कैसे महाराज किसी अनजान से राजकुमारी का विवाह कर सकते हैं लेकिन फिर उसने देखा कि चिट्ठी पर राजा की मुहर भी लगी हुई थी इसलिए यह लड़का झूठ नहीं बोल सकता है यह सोचकर महारानी ने राजकुमारी का विवाह उस युवक से कर दिया कुछ दिनों के बाद जब राजा वापस आया तो उसे पता लगा कि उसकी पुत्री का विवाह उसी वक्त से हो गया है यह सुनते ही राजा गुस्से से आग बबूला हो गया और उसने महारानी से पूछा तुमने यह सब क्यों किया तब महारानी ने बताया महाराज जैसा कि आपने चिट्ठी में लिखा था मैंने वैसा ही किया है राजा ने महारानी को चिट्ठी दिखाने के लिए कहा जब महारानी ने चिट्ठी दिखाई तो राजा ने चिट्ठी में कुछ और ही लिखा पाया राजा ने गुस्से में सैनिकों को कहा जाओ और जाकर भीड़ को पकड़कर लाओ सैनिक तुरंत गए और भीड़ को पकड़कर ले आए राजा ने गुस्से में भीड़ से कहा तुम ने धोखे से मेरी पुत्री के साथ विवाह तो कर लिया लेकिन मैं तुम्हें अपना दामाद स्वीकार नहीं करूंगा भीड़ ने राजा की बात सुनकर कहा लेकिन महाराज मैंने तो आपके साथ कोई धोखा नहीं किया है राजा ने भीड़ की बात सुनकर कहा तुम मुझे भी बेवकूफ बनाना चाहते हो लेकिन मैं तुम्हें अपना दामाद स्वीकार नहीं करूंगा अभी दोनों की बात चल ही रही थी कि एक सैनिक ने आकर राजा से कहा महाराज बाहर एक महात्मा आए हैं वापसी इसी समय मिलना चाहते हैं राजा ने महात्मा को अंदर लाने का आदेश दिया महात्मा जी अंदर आए तो राजा ने उठकर उनको प्रणाम किया और उनके आने का कारण पूछा महात्मा ने कहा राजन् लगता है आपने मुझे पहचाना नहीं राजा ने कहा नहीं महाराज मैंने आपको नहीं पहचाना महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा राजन् मैं वही हूँ जिसे तुम आज से सोलह साल पहले भाग्य का लिखा मिटाने की बात बोलकर आए थे जैसे ही महात्मा ने यह बात कही राजा एकदम से चौंक गया उसे सब कुछ याद आ गया महात्मा ने मुस्कुराते हुए कहा क्यों राजन भाग्य का लिखा मिटा दिया राजा ने आँखें नीची करके कहा नहीं महात्मा जी मैं भाग्य के आगे हार गया महात्मा ने कहा राजन् भाग्य के हाथों कोई नहीं जीत सकता है जीवन में सफलता और उल्टा का निर्धारण केवल भाग्य पर निर्भर नहीं करता है बल्कि कम भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं भाग्य हमें परिस्थितियां प्रदान करता है अवसर देता है परन्तु उनका सदुपयोग कैसे करना है यह हमारे कर्मों पर निर्भर करता है
कठिन परिश्रम दृढ़ संकल्प और सकारात्मक सोच के साथ हम प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना भी कर सकते हैं और सफलता प्राप्त कर सकते हैं इसलिए हमें भाग्य पर भरोसा करते हुए कर्म करते रहना चाहिए भाग्य के हाथों विजय प्राप्त करना संभव नहीं हो सकता है लेकिन कम और प्रयासों से हम निश्चित रूप से सफलता की ओर अग्रसर हो सकते हैं इसलिए अब भीड़ को अपना दामाद स्वीकार करो और अपना राजपाट उसको सौंप तो राजा ने कहा महात्मा जी जैसा आपने कहा है वैसा ही होगा राजा को समझाकर महात्मा जी वहां से चले गए राजा ने भीड़ से माफी मांगी और सारा राजपाट को सौंप दिया तो दोस्तों कैसी लगी आपको आज की कहानी ऐसी ही एक नई कहानी के साथ तब तक के लिए अपना ख्याल रखें धन्यवाद