यह पढ़ने के बाद आपका जीवन आपके हाथ में है!

भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ जब लोगों को पता चला कि बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ है तो लोग यह जानना चाहते थे कि बुद्ध को क्या ज्ञान प्राप्त हुआ है उन्होंने क्या नया जाना नया इसलिए क्योंकि संसार में पहले से ही ज्ञान का भंडार भरा पड़ा है और जिस ज्ञान को सब जानते हैं उससे अलग बुद्ध ने किया जाना एक दिन बुद्ध के पास एक व्यक्ति आया और उसने बुद्ध से कहा कि बुद्ध मैं ज्ञानी व्यक्ति हूं मैंने सभी शास्त्रों का गहन अध्ययन किया है मैंने वेद पुराणों का अध्ययन किया है मैंने गहन चिंतन मनन किया है मैंने सुना है कि आपको भी ज्ञान की प्राप्ति हुई है मैं यह जानने आया हूं कि आपको क्या प्राप्त हुआ है वह कौन सा ज्ञान है जिससे अब तक हम सब अनजान थे आपको क्या प्राप्त हुआ है बुद्ध उस व्यक्ति की बात सुनकर बुद्ध मुस्कुराए और बोले मुझे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है बल्कि मेरे पास जो था वह भी चला गया व्यक्ति ने कहा आपसे क्या चला गया बुद्ध बुद्ध ने कहा लोभ मोह माया लालच ईर्ष्या क्रोध कामना इच्छा वासना यह सब मुझे छोड़ चुके हैं वह व्यक्ति बोला फिर आपने क्या पाया बुद्ध बुद्ध ने कहा कुछ भी नहीं इस पर में व्यक्ति बोला फिर लोग यह कहते हैं कि आपको ज्ञान की प्राप्ति हुई है कि आपने ज्ञान प्राप्त नहीं किया बुद्ध मुस्कुराए और बोले मैंने ज्ञान प्राप्त नहीं किया ज्ञान तो सर्वत्र है कण कण में व्याप्त है उसे प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है मैंने तो केवल अपना ज्ञान खो दिया है अज्ञान खोने के बाद क्या बचता है व्यक्ति बोला अब ज्ञान न होने पर तो सिर्फ ज्ञान ही बचता है बुद्ध ने कहा जब ज्ञान और अज्ञान दोनों ही न बचे तब क्या बचेगा
व्यक्ति बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और बोला कि बुद्ध इस स्थिति के बारे में तो मैंने कभी विचार ही नहीं किया बुद्ध कहते हैं मेरे पास जो कुछ भी था मैंने सब खो दिया सब छोड़ जाने के बाद मुझे पता चला कि जिन चीजों से में प्रेम कर रहा था जिन चीजों को में पाना चाहता था वे सत्य ही नहीं थी फिर वह सत्य क्या था जिसे बुद्ध ने प्राप्त किया बुद्ध कहते हैं कि मैंने सब कुछ खो दिया तब मुझे ज्ञान दिखाई पड़ा लेकिन इसके विपरीत हम सब कुछ पाना चाहते हैं बुद्ध खोने की बात करते हैं और हम पानी की बात करते हैं हम ध्यान करते हैं ज्ञान प्राप्ति के लिए लेकिन क्या हम स्वयं को अज्ञानी माने लिए तैयार हैं क्योंकि जो ज्ञानी हैं उसे ज्ञान प्राप्त करने की क्या जरूरत है क्योंकि वह तो पहले से ही ज्ञानी हैं और एक समस्या यह भी है कि हम अपने आपको ज्ञानी मानते हैं और ज्ञान भी प्राप्त करना चाहते हैं भला यह कैसे संभव है क्योंकि ज्ञान तो उसे ही हासिल हो सकता है जो अज्ञानी हो पहले तो हम यही नहीं
पाते कि ज्ञान क्या है और ज्ञान क्या है ध्यान से समझने का प्रयास करोगे तो पाओगे कि जिसे हम ज्ञान समझ रहे हैं वह अज्ञान ही है हमारा ज्ञान ही हमारा ज्ञान है उदाहरण के लिए हमारा ज्ञान कहता है कि हम श्वास लेते हैं और जीवित रहते हैं लेकिन अगर ध्यान से देखोगे और भी चार करोगी तो पता चलेगा कि हम कभी स्वास्थ नहीं लेते स्वास्थ स्वतः ही चलती है क्योंकि अगर हम श्वास ले सकते और बंद कर सकते तब हम कभी भी को बंद कर सकते थे और शुरू कर सकते थे फिर कोई भी व्यक्ति मृदा न होता अगर मुद्दा होता तो मुद्दे भी सांस ले रहे होते हैं तब यह हमारा ज्ञान ही है जो कहता है कि हम सांस लेते हैं धरती पर जब से मनुष्य आया है तब से अब तक मनुष्य एक ही प्रकार से चल रहा है क्या आपने गौर किया व्यक्ति गरीब हो या अमीर समय एक ही जैसी भावनाएं हैं सब क्रोध भी करते हैं सब प्रेम भी करते हैं सब स्वार्थी हैं सब लालची हैं सब एक दूसरे से आगे भी निकलना चाहते हैं इतिहास में बहुत बडे बडे राजा और सम्राट हुए जिन्होंने अपनी इज्जत बनाने और बचाने के लिए बहुत कुछ नष्ट किया बर्बाद किया लेकिन आज वह राजा और सम्राट नहीं है उनकी जगह हम हैं जो एक राजा या सम्राट करता है वहीं एक गरीब व्यक्ति भी करता है वह भी अपनी इज्जत बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है किसी भी हद तक जा सकता है कितना भी गिर सकता है किसी की भी हत्या कर सकता है किसी को भी बर्बाद कर सकता है और खुद के प्रांत भी ले सकता है और अंत में चाहे कोई सम्राट हो या कोई गरीब व्यक्ति हो दोनों एक ही स्थिति में प्राण त्यागते हैं एक सम्राट हो सकता है कि युद्ध के मैदान में अपने प्राण त्यागे और एक गरीब व्यक्ति हो सकता है कि अपनी झोपड़ी के बाहर खुले मैदान में प्राण त्यागे लेकिन प्राण निकलने में पीड़ा तो एक जैसी ही होती है हजारों सालों से सब कुछ एक जैसा ही घटित हो रहा है उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है सिर्फ चेहरे बदल रहे हैं फिर भी हम इतने ज्ञानी व्यक्ति हैं कि उन सब से हम कुछ भी नहीं सीखते हम भी वही गलतियां दौड़ाते हैं जो पहले ही हो चुकी है और उसका परिणाम भी हम जानते हैं फिर भी उन्हीं गलतियों को बार बार करते रहते हैं इसीलिए बुद्ध कहते हैं अमर ज्ञानी हैं क्योंकि जिसे हम अपना ज्ञान समझ रहे हैं वहीं ज्ञान हमें सत्यता से दूर रखता है बुद्ध जिस सत्य की बात करते हैं उन्हें जो सत्य प्राप्त हुआ या जो सत्य होता है वह ब्रह्मांडीय होता है वह हर जगह हर समय हर स्थिति पर एक जैसा ही होता है उसमें कोई बदला
नहीं होता है लेकिन हमारा जो ज्ञान हैं हमारा जो सत्य है वह परिस्थिति समय और स्थान के बदलने पर बदल जाता है एक सत्य जो भारत में सत्य है वह दूसरे देशों में असत्य हो जाता है जैसे प्रेम और करुणा एक यूनिवर्सल सत्य है कि हर जगह हर स्थिति में एक जैसा ही होता है कि हर जीवों में एक जैसा ही प्रकट होता है चाहे इंसान हो या जानवर जैसे एक मां अपने बच्चे से प्रेम करती है वैसा ही एक गाय अपने बछड़े से करती है प्रेम जाति धर्म और शारीरिक बनावट से परे है इसीलिए बुद्ध प्रेम और करुणा की बात करते हैं लेकिन बुद्ध जिस प्रेम और करुणा की बात करते हैं हम उसे समझ नहीं पाते प्रेम तो हम भी करते हैं लेकिन क्या वास्तव में हम प्रेम करते हैं एक पति कहता है मैं अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हूँ लेकिन कुछ समय बाद वहीं पति अपनी पत्नी की हत्या कर देता है अब यह कैसे संभव है कि जहाँ प्रेम था अब उसकी जगह क्रोध नहीं ले ली क्योंकि यहां प्रेम था ही नहीं सिर्फ शारीरिक आकर्षण था इसलिए वह समय के साथ बदल गया हम प्रेम या कोई भी व्यवहार कहां से सीखते हैं यह अपने परिवार आसपास के लोगों और स
पास ही सीखते हैं हमारी बुद्धि हमारे विचारों से ही निर्मित होती है लेकिन हमारे आसपास के माहौल से ऐसे विचार हमारे अंदर डाले जा रहे हैं जिससे हमारी बुद्धि और समझ का पतन होता जा रहा है वहीं विकृत होती जा रही है प्रेम एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो स्वयं प्रकृति की देन है और यह प्रकृति का एक हिस्सा भी है प्रकृति हमसे प्रेम करती है वह हमारे सभी प्रकार से ध्यान रखती है लेकिन इसके बदले वे कभी हमसे कोई मांग नहीं करते जबकि हम ही प्रकृति को नष्ट करने में लगे रहते हैं यह वह प्रेम हैं जो हमारे अंदर भी होता है
लेकिन हम इसे भूल गए हैं जिस प्रेम को हम जानते हैं और प्रेम समझते आ रहे हैं वह बनावटी है वह स्वास्थ्य पर टिका हुआ है उसे हमने बाहर से यानी अपने समाज और आसपास के लोगों से सीखा है समाज में जैसा दिखाया जाता है हम बिल्कुल वैसा ही करना चाहते हैं वैसा ही बनना चाहते हैं हम वैसा ही प्रेम भी करना चाहते हैं हम हर चीज में समाज की नकल करना चाहते हैं हम अच्छा दिखना चाहते हैं लोग हमें देखें तो कहीं कि देखो कितना प्रेम है इनमें वास्तव में जो सत्य है वे बहुत दूर नहीं है बिल्कुल हमारे नजदीक ही है वह हमारे ही अंदर है हमने अपनी आंखों में पट्टी बांध रखी है दिखावे की पत्ती समाज की नकल करने की पत्ती इसीलिए हम अपने अंदर के सत्य को देखना ही नहीं चाहते हैं या ये कहें कि हम इतने व्यस्त हैं कि हमें यह सोचने का समय ही नहीं है कि हम रोज जो कर रहे हैं उससे हटकर कुछ और भी किया जा सकता है अपनी सामाजिक बुद्धि को छोड़ दें जो समाज ने सिखाया है उसे कुछ समय के लिए भूल जाएं और स्वयं को समझाया खुद को जानने का प्रयास करें आपके सबसे करीब आप खुद ही हैं आपसे ज्यादा आपके करीब और कोई हो ही नहीं सकता दूसरे किसी व्यक्ति से ज्यादा आप स्वयं को बेहतर जानते हैं देखें कि आप क्या जानते हैं क्या सच में आप अपने बारे में कुछ जानते भी हैं या बस ऐसे ही जीए चली जा रही है जन्म लेना और रोते चिल्लाते इस दुनिया से चले जाना इस जीवन का उद्देश्य कदापि नहीं है
Thank for Reading ❣️