आप देख रहे हैं Googlestory.in तो चलिए पढ़ते हैं आज की इस कहानी की ओर तीन दोस्त आशुतोष ने पुन और अपरिचित राजस्थान घूमने निकला ने फुल्के गाड़ी नब्बे के स्पीड से जा रहे थे
जयपुर के बाद एक छोटे से कस्बे में थोड़ी पुरानी हवेली दिखाई दी जिसके बाद होटल का बोर्ड लगा था तीनों काफी नशे में था सोचा कि आज की रात रजवाड़ों की तरह गुजारेंगे गाड़ी अंदर लगाकर रिसेप्शन पर पहुंचा तो हाथ में बोतलें खनक रहे थे पूरे रिसेप्शन पर भक्तों से भर गए
रिसेप्शन पर खड़े उस आदमी ने अपने चेहरे पर एक ऐसे मुस्कुराहट देर जैसे वो उन्हीं का इंतजार कर रहा था उसे निपुण में थोड़े से नशे में और बहुत घमंड में लड़खड़ाते हुए जुबान में रूम का किराया पूछा उस आदमी ने पलट कर कहा कैसे टूरिस्ट के लिए तीन हज़ार में तीन दिन रहने का प्लान है जिसमें तीनों एक ही कमरे में रह सकते हैं
इतना सस्ता सुनकर आशीष हँसता हुआ नशे में बोला यह कौन से गरीबों वाला और ताला बाहर से तो बड़ा मेला वाला था पता नहीं कैसा बाथरूम होगा मैं बाहरी बाद मौका रहा था आशीष के बाद हाथ में आई थी कि रिसेप्शन वाला आदमी ने उसे ज़रा से सख्त आवाज में कहा कम यहां कुछ भी कीजिएगा लेकिन ऐसे कामों के लिए बाथरूम में जाइएगा बाहर नहीं अभिजीत इन तीनों में हमेशा चुपचाप पीछे रहता था वो आदमी तीनों को एक रूम में छोड़कर चला गया सामान वगैरह रखने के बाद उन तीनों ने थोड़ी सी और भी और उसके बाद खाना खाकर सोने के बात हुई निपुण और अब इसी तो लौटते ही सो गया लेकिन आशीश घमंडी में और से किस्म का था अपने शहर में किसी गुंडे के पैसों का इन्वेस्टमेंट का काम देखता था तो उसको बाथरूम वाली बात अखर गई चुपचाप टहलते हुए रह रह कर लड़खड़ाता हुआ होटल के बाहर पहुंचा और घूमता घूमता हवेली के पेट से लटकी दीवार के साथ साथ गार्डन के खास पर चलने लगा कुछ आगे गया तो उधर लायक नहीं थे दीवार का एक कोना कुछ ऐसा था कि उसके सामने एक पेड़ था कोने में अगर कोई हो तो पेड़ से थोक जाएगा उसी के पीछे खड़े होकर आशीष ने वही करना शुरू किया जो मना किया गया था और हल्के हल्के हंसते हुए बोलने लगा आम को मना करेंगे अभी हमारे शहर न होते तो खाल खींच कर जूते बना डालते हैं आशीष में अपनी बात पूरी के दोष को जवाब मिला एक बहुत शोर तार चीखने की आवाज से चीख इतनी तेज थी कि आशीष का तेल कुछ पल के लिए धड़कना भूल गया जो पीछे देखते देखते ही वहां से भागा उसके चेहरे पर लिखा था कि वो कितनी बुरी तरह से डरा हुआ था निपुण की नींद दरवाजे पर ज़ोर से खटखटाने और बाहर से आते आशीष की चीखों से खुले ने फुल ने जैसे ही दरवाजा खोला तो शेष अंदर घुसते के साथ ही रोने लगा और बोला है भाई दरवाजा बंद बनकर बनकर दबाई वरना हम सब मरेंगे आशीष जैसे कुनबे को ऐसे तरह हुआ देखकर मिथुन उसे तो थप्पड मारा और होश में आकर आशीष ने पुल को पूरी बात बताई निपुण हंस पड़ा और हँसते हँसते ही उसने कहा है कि अहम बोल रहा है तो यहां पात्रों करने से भूत पकड़ता अब जब हजम नहीं होती तो इतना मत भी आकर चल मैं भी चलता और वहीं पर टंकी खाली करूंगा देखता हूँ कौन रोड क्या उखाड़ हमारा चल आशीष के लाख मना करने पर भी ने पूंछा पर चलते उसे खींचता हुआ लेकर जाने लगा आगे आकर निपुण चल रहा था और पीछे पीछे आशीश निपुण दरवाजे के पास ही था कि तभी शेष से भागता हुआ पीछे देखता हुआ अन्दर की ओर निपुण से टकरा कर गिर पड़ा
निपुण पीछे तुरंत पलटा और देखा आशीष पीछे नहीं है निपुण के सामने पड़े आशीष को उठाया और कहा तो तुम मेरे पीछे था बार से कैसे आया आशीष वैसे ही घबराते हुए बोला तू पागल हो क्या क्या मैं तुम्हें कोने में बाथरूम गया था आगे के बाद निपुण ने पूरी कर दे और तेरे पीछे से कोई चीका का आना आशीष इससे पहले कुछ बोले निपुण ने उसे चलने को कहा चलवाई जदयू ऊपर अभिषेक कमरे में अकेला दोनों वहां से पूरे चाँद लगा कर ऊपर आ गया तो कैलरी के आखिर में उन्होंने कमरे का दरवाजा धीरे से एक आवास करते हुए बंद होते हुए दिखाई दिया उनके पहुंचते पहुंचते ही दरवाजा पूरी तरह से बंद हो गया
लेखन और अवशेष दरवाजे को जोर शोर से खटखटाए जा रहा है और अभिषेक को अंदर से दरवाजा खोलने के लिए पुकार रहा था लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा था निपुण ने नीचे रिसेप्शन पर जाकर दूसरे चाबी लाने की बात आशीष से कही और तुरंत नीचे की ओर भागा
निपुण की गैर मौजूदगी में आशीष दरवाजे पर हाथ पैर मारता ही गया और तभी दरवाजा अपने आप खुला और आशीश में अंदर देखा में कौन और अभिजीत आराम से सो रहा था तो तुरंत वापस कैलरी के आखिर में भागा तो देखा रिसेप्शन पर को ही नहीं है वापस कमरे के दरवाजे पर आया तो अंदर जाने से डर के मारे हालत खराब हो गई बाहर से आती रोशनी की वजह से अंदर से निपुण चीख कर बोला अब तो पिया मत करो यार अभी आता अंदर राजा या फिर बाहर चला गया इतने लाइट में मैंने सो सकता आशीष ने चुपचाप दरवाजे को बंद किया और आकर बिस्तर पर लेट गया कमरे में इतना सन्नाटा था जैसे वहां कोई और था ही नहीं बार बार रह रहकर अपने मोबाइल के डिस्प्ले को फोन करके इधर उधर देख रहा था कि दोनों है या नहीं
और हर बार लाइट जलाने पर करवट बदली हुई होती थी दोनों की लेटे लेटे आशीष को नींद आ गई और सोते ही उसने अपने पलंग पर महसूस किया कि दोनों तरफ एक एक करके कोई बैठा है
इतने से पलंग पर तीनों तो सो नहीं सकते हैं
शेष थोड़ा सा करवट बदलने को इधर उधर हिला डुला एक बार अब उसी तो एक बार ने पाँच से टकराया और फिर सिर उठा अब यार तुम लोग चैन से सोने दे दो लेकिन अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया क्योंकि पूरे कमरे में आशुतोष बिल्कुल अकेला था
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