जैसा अन्न वैसा मन।

एक बार बुद्ध की कुर्सी से बुद्ध से पूछते हैं बुद्ध आप हमेशा भोजन को प्रेम से ग्रहण करने के लिए क्यों बोलते हैं और भोजन को संतुलित मात्रा में ही ग्रहण करने के लिए क्यों कहते हैं कि अगर हम उस भोजन को प्रेम से ग्रहण नहीं करेंगे तो क्या वे भोजन नहीं रहेगा या फिर अगर हम भोजन को ज्यादा मात्रा में ग्रहण करेंगे तो क्या वह बीस का कार्य करेगा बुद्ध ने कहा हम जैसा भोजन ग्रहण करते हैं हमारे विचार उसी के अनुसार होते चले जाते हैं भोजन से यहां बुद्ध का मतलब उन सभी चीजों से है जो भी हम ग्रहण करते हैं फिर चाहे वह खाद्य पदार्थों या फिर जानकारी ये दोनों ही चीजें हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित करती है खुद अपने शिष्यों से कहते हैं मैं तुम्हें एक छोटी सी कहानी सुनाता हूँ इसे तुम इस बात को अच्छे से समझ पाओगी
एक समय की बात है एक साधू जंगल में अपनी कुटिया बनाकर रहा करते थे जो भी व्यक्ति उनके पास अपनी समस्या लेकर जाता है उसकी समस्या का पल भर में समाधान कर देती धीरे धीरे आसपास के गांव के लोग हैं उन साधु के पास अपनी समस्या का समाधान पूछने लगे
और वह सभी की समस्याओं का समाधान कर देते हैं धीरे धीरे उनकी प्रसिद्धि गांव से नगरों और नगरों से राजधानी तक पहुँच गई साधु की प्रसिद्धि की बात उस राज्य के राजा के कारणों पर भी पड़े तो एक दिन राजा अपनी मंत्री और सेनापति के साथ साधु महाराज से मिलने पहुंचे
राजा ने साधु से कहा महाराज मैंने आपके भूत चर्चे सुने हैं मैंने सुना है कि आपके पास हर समस्या का समाधान है इसलिए मुझे लगता है कि आपकी सबसे ज्यादा जरूरत हमारी राज दरबार में है जहां पर प्रजाजन हर दिन नई नई समस्या लेकर आते हैं आप यहां जंगल में अभ्यर्थी अपना समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं आपको तो यहां ठीक से खाना भी नहीं मिलता होगा जंगली फल तोड़कर खानी पड़ती हैं पत्थरों पर सोना पड़ता होगा आप हमारे साथ हमारे है जरिए वहां पर आपको हर तरह की सुख सुविधाएं दी जाएंगी खाने पर स्वादिष्ट व्यंजन और पकवान होंगे आप उनका स्वार्थ लीजिए आप यहाँ कहाँ अपना समय कमा रहे हैं आप हमारे साथ हमारे राज दरबार में बैठी और राज दरबार की शोभा बढ़ाई है वह साधु उस राजा से बहुत मना करते हैं लेकिन मैं राजन नहीं मानता उनके चरणों में गिर पड़ता है और अंततः वे उन साधु को अपने साथ ले जाता है
और महल में वह राजा उन साधुओं को हर तरह की सुख सुविधाएं देता है धीरे धीरे समय बीतता है और समय बीतने के साथ ही धीरे धीरे साधु का व्यवहार भी बदलने लगता है आप विश्वास नहीं करेंगे उस राजा के महल में रहते रहते उस साधु का व्यवहार पूरी तरह से बदल जाता है इस बात को वह साधु भी नहीं समझ पाता कि आखिर उसका स्वभाव इतना बदल चुका है फिर एक दिन अचानक ही साधु मौका पाकर उस महल से भाग जाता है लेकिन उन्हें अपने साथ कुछ कीमती सामान लेकर भागता है जिसमें रानी की हार हीरे जवाहरात और कुछ कीमती मुड़ी होती है जब राजा को साधु की चोरी का पता चलता है तो वह अपने सिपाही उसके पीछे भेज देता है उसे पकड़ने के लिए सिपाही हर जगह साधु को खोजते हैं लेकिन वे उन्हें कहीं नहीं मिलता वह साधु जंगल की तरफ भागता है और भागते भागते थक जाता है तब जंगल के बीचों बीच आकर एक पेड़ के नीचे बैठ जाता है जैसे ही वे उस पेड़ के नीचे बैठता है फिर से एक फल टूटकर साधु के पास गिरता है साधु को बहुत जोरों की भूख भी लगी थी इसीलिए वे उस पल को खा लेता है वे फल एक औषधि होती है क्योंकि पेट में जाने के बाद उसे बीमार कर देती हैं अगर बिना जरूरत के औषधि भी ली जाए तो वह भी शरीर को नुकसान पहुंचा सकती है वह औषधि उस साधु को बीमार बहुत बीमार कर देती है वह इतना बीमार हो जाता है कि उसकी मरने की हालत हो जाती है और उसका शरीर सूखकर एकदम एक लकड़ी की जैसा हो जाता है अब उस साधु को विचार आता है कि आखिर में क्यों उस राजा के धन को लेकर भाग रहा हूं मैं तो एक संत था न जाने मुझे क्या हो गया कि में व्यर्थ में ही इस धन को लेकर भाग रहा हूं यह विचार आते ही वह साधु आत्मग्लानी के भाव से भर जाता है उसे बहुत पश्चाताप होता है और वह में वापस जाता है और राजा का धन वापस करने लगता है यह देखकर वह राजा बड़ा आश्चर्य चकित होता है
और साथ उसे पूछता है जब तुम वापसी करना था तो तुम इस धन को लेकर भागे ही क्यों यह सुन रही साधु राजा से कहता है क्षमा कीजिये राजन परंतु पिछले कुछ महीनों से मैंने आपका अन्य खाया है इसीलिए मेरी सोच बिल्कुल आपके जैसी हो गई थी वो तो भला हो उस वृक्ष का जिसने मुझे औषधि वाला फल दे दिया जिसे खाने से मेरा शरीर बीमार पड़ गया और आपका जितना ही मैंने खाया था वह सब उस बीमारी में निकल गया और तब जाकर मुझे होश आया कि मैं कितना गलत कर रहा था वह साधु उस राजा से कहता है आपका जितना भी धन है वह अपनी मेहनत करके नहीं पाया उसे या तो आपने छीना है या फिर वसूला है इसीलिए इस धन के सेवन ने मेरी बुद्धि भ्रष्ट करती थी कहानी खत्म करने के बाद बुध शिष्यों से कहते हैं जो भी हम ग्रहण करते हैं वहीं हमारे भविष्य को निर्धारित करता है इसलिए मैं आप सब से कहना चाहता हूं कि कुछ भी ग्रहण करने से पहले इस चीज को जरूर देखें
कि जिसे आप ग्रहण करने जा रही है वे कहां से आता है क्या यह पाप से आता है रूप से आता है कि शशि आता है या फिर प्रेम से आता है क्योंकि जो भी आप अपने भीतर ग्रहण करते हैं चाहे वह भोजन हो या फिर विचार ये दोनों ही तय करते हैं कि भविष्य आपका कैसा होगा
Thank for Reading ❣️