जल्दी चलो वरना वो आ जायेगा। एक सच्ची घटना।

आप देख रहे हैं Googlestory.in तो चलिए पढ़ते हैं आज की इस कहानी की ओर बहुत समय पहले की बात है धर्मपुर गांव में एक आदमी राम औजार चक्की वाला रहता था पूरा गांव अपना अपना आता उसी के पास पिसवा तहत है राम औजार का एक छोटा सा परिवार था एक पीवी दो बच्चे और उसकी एक बूढ़ी मां राम हज़ार की पत्नी अंजना अपनी सासू माँ का बहुत ख्याल रखते थे उसके साथ ही साथ अपने बच्चों की पढ़ाई भी करवा लेते राम औजार के साथ शाखा कभी खेती का काम करते तो कभी चक्की पर आकर उसकी मदद करने की सोचते पर राम औजार उसे कभी भी चक्की पर हाथ नहीं लगाने डेटा बड़े प्यार से कहता तुम हमारे घर की लक्ष्मी और लक्ष्मी से थोड़े न काम करूंगा भी ऐसी जगह जहां से लक्ष्मी मां की कृपा मुझ पर बरसती और पाप लगेगा मुझे बस तुम आराम से मुझे खाना खिलाओ और घर चला गया कभी कभी खेतों में कामों से लौटकर चरखे का काम संभालना राम औजार के लिए मुश्किल होता था उस वक्त अंजना हमेशा यही सोचते कि काश मैं भी कर सकते आटा पीसने का काम चक्की पर तुम मदत हो जाते जो भी था हंसते खेलते को रहा था
फसल भी अच्छी हो रहे थे और चक्की का काम भी अच्छा चल रहा था लक्ष्मी मां की प्रसन्नता राम औजार और उसके परिवार के ऊपर थे तो मेहनती भी तो उतना ही था काम ज्यादा पड़ने पर रात दिन एक कर देता था दिवाली नजदीक आ रहे थे लोगों को अपने अपने घरों में बहुत सारे पकवान बनाना था बेसन के लड्डू गोल गोल चकले से हो पापडी फसाद ड्राय फ्रूट्स के लड्डू चावल के पापड़ और बहुत सारे पकवानों के लेफ्ट थे इन सबके लिए लगने वाला आता गांव की औरतें राम औजार के पास के पिछवाडे थे क्योंकि उसे पता था कि कौन सा आटा पारित पीसना है और कौन सा आटा तरह राम औजार अपनी पूरी लगन से काम करता काम पर जाने की वजह से बहुत दिन रात काम कर रहा था सोने का वक्त नहीं मिलता था उसे एक रात जब अंजना राम औजार के लिए खाना लेकर चक्की पर गई तो उन्होने कहा दो रोटी खा लो और उसके बाद काम कर लेना राम चार तैयार नहीं हुआ उसने कहा काम बहुत बढ़ गया है दिवाली नजदीक आ गया और सभी को अपना अपना चाहिए अगर आज रात तक मैंने सारा आटा तैयार नहीं किया तो लोग घर में पकवान कैसे बनेंगे पन्ना डे वाले बिठाए गए अच्छे थोड़ी रखती है और पत्थर लेकर अपनी मशीन पर टनटन आने लगा उसी वक्त अंजना ने राम औजार का हाथ पकड़कर बाहर खींच लिया और कहा दो रोटी खा लो तब तक ये टंडन का काम न करते आता है तो दूसरा कौन सी बड़ी बात है यह तो हम घर पर ही पीस लेता राम हज़ार हंसने लगे गया उन्होंने कहा देखो मैंने यह चना दाल डाल दिया बस तुम अब पत्थर का इशारा करते रहना तक नहीं आता चिपकना जाए मैं फटाफट से दो रोटी खा लेता हराम औजार ने बाल्टी से पानी निकालकर हाथ मुँह धोया और रोटी का कथन खोलकर सब्जी रोटी खाने लगे हैं इतने में ने उसे किसी ने पीछे से आवाज थी हरे राम अरे भाई तनिक इधर आओ यार देखो यह अंधेरे में हमारा थैला कीचड़ में फंस गया है चराकर हाथ लगा दो भाई भरा थैला है उठाया नहीं जा रहा दिवाली के लिए लाए हैं राम औजार ने अपने रोटी वहीं रखे और चला गया ठेलेवाले की मदद करने जैसे तैसे कीचड़ से ठेला बाहर निकला राम औजार ठेले वाले से बातें करने लगे हैं दिवाली के दिन थे सभी अपने अपने कामों में व्यस्त हैं बस उसे की बातें हो रहे थे इधर अंजना जो पूरी दाल पीस चुके थे
उसने सोचा दूसरा थैला भी डाल देता हूं राम औजार खुश हो जाएंगे और वैसे भी यह कितना आसान काम है इतना सोचकर बोझ ऐसे ही अगला थैला लेने के लिए नीचे के अंजना के सारे पत्ते में लिपट गई उन्होंने खुद को बचाने की बहुत कोशिश की पर खुद मोटर से टकरा गए और उसका शरीर के कई चीतल होकर पूरे चक्की घर में फैल गया पूरा छठे घर सफेद आटा कई जगह लाल खून के निशान शरण गया बहुत ही भयानक मंजर देख रहा था राम औजार लौट आया और जैसे ही उसने रोते आठ मिले और अंदर की तरफ आवाज लगाते हुए बोला जैसे उसने अपनी नजर फिर आए भौचक्का होकर देखने लगा जोर शोर से छाती पीट पीट कर रोने लगा चक्की चले जा रहे थे और खून के छीटें जा रहा है लेकिन अंजना उसके चार कप की निकल चुके थे आज अंजना को मरे हुए सात साल हो गए हैं पर आज भी जब दीवाली के तीन दिन पहले जब राम औजार खाना खाने बैठता है तो बंद छक्के भी अपने आप चलने लगते है और अपने आप उसमें आता निकलने लगता है और अचानक से चारों ओर एक चीख कौन है और पूरा चक्की कर लहूलुहान हो जाता है पिछले कई सालों से राम औजार दिवाली में आता नहीं भेजता बल्कि पूरे दस दिन अपनी चक्की को बांधे रखता है फिर भी ये घटना ज्यों की त्यों ही घटती है आज तक कोई समझ नहीं पाया अंजना तो सात साल पहले मर चुके थे तो दीवाली के तीन दिन पहले क्या उसकी आत्मा हमेशा यहां आकर इस चक्की पर मरती है आखिर क्यों होता है जबकि पूरी तरह से लहूलुहान क्या उसके खून के कतरे आज भी वहां होने का अहसास दिलाता है पर आज भी लोग कहते हैं के दिवाली से पहले वो आती है तो दोस्तों ये थी आज की पहले कहानी तो चलिए बढ़ता है आज की दूसरी कहानी थी और प्लेटफॉर्म की शीट पर बैठते ही जब मैं अपने घड़ी में वक्त देखा तो वक्त हो रहा था रात के साढ़े आठ बजे का वक्त को देखते ही मैंने अपने मन ही मन में कहा अरे
अस्तु काफी लेट हो जाए कि वे पहुँचते पहुँचते और लगता मुझे कुछ सवारी भी नहीं मिले के स्टेशन से घर जाने के लिए दरअसल आज शाम जब में छह बजे अपने ऑफिस से निकला तो निकलते ही मेरे फोन के रंग बजे फोन के ऋण बचते हैं मैंने जब फोन देखा तो उस पर गांव से पापा का काला रहा था पापा का कॉल आता देख मैंने जैसे ही कॉल रिसीव किया तो पापा ने कहा बेटा तुम जल्दी से रात नौ बजे वाली ट्रेन पकड़कर का जाओ दादा जी की तबियत कुछ ठीक नहीं है
पापा की यह बात सुनते ही में फटाफट अपने घर गया और एक तो सामान पैक करके भागता हुआ प्लैटफॉर्म आ गया और यहां बैठकर नौ बजे वाले ट्रेन का इंतजार कर रहा नौ बजे वाली ट्रेन पकड़ने पर ट्रेन मुझे रात के साढ़े बारह बजे तक गांव के स्टेशन उतार देगी थोड़ी देर और इंतजार करने के बाद एक रात के नौ बजे मेरी ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आकर लग गई ट्रेन के लगते हैं मैं फटाफट से ट्रेन में चढ़ कर बैठ गया ठंड का मौसम होने के कारण ऊपर से रात की ट्रेन होने की वजह से ट्रेन में मुसाफिरों की तादाद बहुत कम थे उस बोगी में मैं अकेला ही बैठा हुआ था ट्रेन के सारी खिड़कियां बंद थे और ऐसा हो भी क्यों इतनी ठंड में कौन खिड़कियां खोलेगा मेरे पाटने के पाँच सात मिनट बाद ट्रेन खुल गई ट्रेन के खुलते ही ट्रेन ने रफ्तार पकड़ ली और उस रफ्तार से ट्रेन में बैठा हुआ मैं पर आगे बढ़ने लगा धीरे धीरे रात काफी होते जा रहे थे जिस कारण आसमान और बाहर का माहौल और पैसे आदर्शों इंसान होता जा रहा था
करीब डेढ़ घंटा ट्रेन चलने के बाद मेरी को कि में एक भी मुसाफिर नहीं चढ़ा और ऐसा हो भी क्यों ना ट्रेन जैसे स्टेशन पर रुके थे उसे स्टेशन पर भी एक पिन मुसाफिर नहीं था काफी तीन घंटा ट्रेन चलने के बाद ट्रेन कानपुर स्टेशन पर रुकी प्रेम के कालपुरुष स्टेशन पर रुकते अचानक मेरी पोती की लाइट एकदम से बंद हो गई एकदम से लाइट बंद होते में काफी चाँद सा गया कि अचानक ट्रेन को क्या हुआ क्या लाइट बंद होते ही एक आदमी मेरी रिपोर्ट में दाखिल हुआ मगर मेरे को भी के अंदर और प्रेम के बाहर स्टेशन में इतना अंधेरा था कि मैं उस आदमी को ठीक से देख भी नहीं पा रहा था मगर हल्की रौशनी में मजे चुनाव साथ में को देख रहा था वो आठ में एक बड़ा सा कंबल ओढ़े हुए खड़ा था मगर इतना अंधेरा था कि मोसाद में का चेहरा नहीं देख पा रहा था खैर चलकर को आदमी ठीक मेरे पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गया और उसके बैठते ही ट्रेन वापस से आगे बढ़ने लगे मगर अब एक अंतर यह था कि आप मेरी तो की की लाइट नहीं जल रहे थे खैर मैं सब बातों को नजरअंदाज करके बस स्टेशन से का घर कैसे जाऊंगा यही सोच रहा था कि तभी पीछे से आवाज आई भाई साहब आप एम गांव रहना या आवाज सुनते ही मैं छत से पीछे मुड गया और अपने मन ही मन में सोचते हुए किसी आदमी को कैसे पता चला कि मैं किस गांव में उतरूंगा और उस आदमी से पूछा हाँ मैं तो इन गांवों दूंगा मगर आप कौन हैं और आपको कैसे पता चला कि मैं हिमुडा उतरूंगा इस पर उस आदमी ने जवाब दिया मुझे सब कुछ पता और आप मुझे नहीं जानता उस आदमी के इतना बोलते ही ट्रेन रुकी ट्रेन के रुकते ही मैं जब ट्रेन से बाहर देखा तो एक पहाड़ी स्टेशन था जिसके बोर्ड पर लिखा था एम कर उस फोटो को देखकर मैं काफी चौंक गया क्योंकि शहर से गांव आने में मुझे तीन घंटे का समय लगता मगर आज मैं कैसे दो घंटे में ही पहुँच गया मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह हुआ तो हुआ कैसे खैर जो भी हो गांव का स्टेशन आते में सामान लेकर ट्रेन से बाहर निकलने के लिए उठा टूटते हुए मैंने जब पीछे देखा तो में और पीस यादा चौंक गया क्योंकि अब मेरे पीछे कोई नहीं था तो इतनी जल्दी जल्दी बाद में गया तो क्या कहा अभी मैं उस आदमी को मुझसे बातें करते हुए सुन रहा था
खैर ट्रेन के खुलते ही में पहले से सारा सामान लेकर ऋण के बाहर निकला और प्लेटफॉर्म के पेंच कर सारा सामान रखकर ये सोचने लगा कि अब करूं तो करूँ क्या क्योंकि पूरे स्टेशन पर मेरे अलावा मुझे और कोई भी दिखाई नहीं पड़ रहा था और ऐसा हो भी क्यों ना इतनी था अंत में इतनी रात को कौन बाहर निकलेगा खैर गांव का स्टेशन होने के कारण स्टेशन पर भी एक लायक नहीं चल रहे थे ऊपर से कोहरा इतना ज्यादा था कि चांद के हल्की रौशनी में भी साफ साफ कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था ऊपर से चारों तरफ इतना सन्नाटा छाया हुआ था कि ट्रेन के काफी दूर चलने के बाद भी ट्रेन की आवाज मुझे साफ़ साफ़ सुनाई पढ़ रहे थे फायर स्टेशन पर खड़े खड़े टाइम पेश न करके में सारा सामान लेकर चलते हुए स्टेशन से बाहर निकला अच्छी बात यह थी कि मैं अपने साथ एक टॉर्च लेकर आया था जब घने अंधेरे में मुझे आगे का रास्ता दिखाने का काम कर रहे थे मगर कोहरा इतना ज्यादा फैला हुआ था
कि मेरे टॉर्च लाइट तुम्हारे पर पड़ते ही चारों तरफ बर्फ की तरह सामान कोहरा दिखाई पड़ रहा था खैर चलते हुए में स्टेशन से बाहर निकला तो स्टेशन के बाहर का माहौल अंदर की तराई घने अंधेरे और सन्नाटे में टूटा हुआ था दूर दूर तक पूरे स्टेशन पर और बाहर रास्ते पर भी मुझे अब तक एक भी इंसान पर दूर एक परिंदा तलक भी नहीं दिखाई पड़ रहा था इतना सुन सा और सन्नाटे में डूबा हुआ पूरा माहौल देखकर मैंने अपने मन ही मन में कहा लगता आज कोई सवारी नहीं मिलेगी
पैदल ही घर जाना पड़ेगा और इतना बोलकर मैं पैदल ही घर की तरफ आगे बढ़ने लगा करीब दो तीन मिनट पैदल चलने के बाद कि तभी मुझे रास्ते के किनारे एक रिक्शा देखा जिस रिक्शा को काली चादर ओढ़े बैठकर मेरी तरह रुख मेरी तरफ कुछ देख रहा था रिक्शा वाले को इस तरह काली चादर ओढ़ कर देख मैंने अपने मन ही मन में का रोग साथ आया पता नहीं ये चाहेगा भैया ने इतना बोलकर में चलते हुए उस रिक्शा वाले के पास गया और का भैया एम गांव के चौक पर चलो मेरे यह पूछते ही उस रिक्शा वाले ने जवाब दिया हां बाबू साहब ना उस रिक्शा वाले के आवास मुझे कुछ सुनी सुनी लग रहे थे मगर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैंने उसकी आवाज कहासुनी थे खैर जाता न सोचकर चढ़कर उस रिक्शा में बैठ गया और मेरे बैठते रिक्शा वाले ने
रिक्शा बढ़ाना शुरू कर दिया अभी हम लोग अंधेरे को चीरते हुए आगे बढ़ ही रहा था कि तभी अचानक रिक्शा का पहिया एक ईट के चटका और एक के टकराते ही अचानक रिक्शा वालों का सर धड से अलग होकर मेरे सामने गिरा तरह सर को घर से अलग होता देख मैं एकदम से चौंक गया और मेरे हाथ पैर कांपने लगा कि अचानक या क्या हुआ किसी भी जिंदा इंसान का असर उसके धड़ से अलग कैसे हो सकता है अभी मैं सोच सोचकर काफ़ी रहा था कि तभी मैंने एक बात पर गौर किया कि धड़ से अलग होने के बाद भी धारण आराम से रिक्शा चलाया जा रहा था मगर ये हो कैसे सकता है कि तभी मेरे सामने पड़े रक्षा के सर से आवाज़ आई आप मुझे नहीं पहचाना बाबू साहब मैं वायु ट्रेन वाला हो यह आवाज सुनकर मैं और पेस यादातर गया मुझे समझ आ गया कि यह कोई इंसान नहीं बल्कि एक शैतान है और अब मुझे मारना चाहता है और मुझे यह भी पता चल गया मैंने ही आवास कहासुनी थे मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं करें तो करूँ क्या मगर मुझे इतना ज़रूर समझ आ गया था कि मैं काफी बड़ी मुसीबत में फंस चुका हूं और शायद मैं आज नहीं बेचूंगा कि तभी मैं हिम्मत जुटाकर चलते रिक्शा से नीचे कूदा और कुत्ते भागने लगा मगर जैसे ही मैं नीचे कूदा मैं भाग रहा था तो करता हुआ सर मेरे पीछे पीछे आ रहा था मैं इतनी तेजी से भाग रहा था कि मानो मेरी मौत मेरे पीछे पड़े हो भागते भागते मैं सीधा एक मंदिर चला गया मंदिर में पहुंचते ही करता हुआ सब एकदम से रुक गया उसके बाद मैंने पूरी रात मंदिर में बिताए और सुबह होते ही अपने घर गया उस रात मैं मरते मरते बचा
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