डर और शर्म को अपने अंदर से खत्म कैसे करें।

एक समय की बात है एक नगर में एक व्यापारी रहता था वह अपने और अपने परिवार के भरण पोषण के लिए नमक का व्यापार किया करता था
उसके परिवार में उसकी पत्नी और दो पुत्र थे
व्यापारी के दोनों पुत्रों का स्वभाव एकदम विपरीत था जहां एक और उसका बड़ा पुत्र बहुत ही संकोची और शर्मीले स्वभाव का था उसे किसी से बात करने में भी शर्म आती थी वहीं उसका छोटा पुत्र बहुत ही बहिर्मुखी और खुले स्वभाव वाले व्यक्ति था वह किसी के भी सामने अपनी बात कहने में संकोच नहीं करता था लोग अक्सर बड़े पुत्र को घोला और बेवकूफ समझते थे और कई बार तो लोग उसके इस भूले और संकोची स्वभाव का फायदा भी उठा लेते थे लेकिन वह पलटकर कभी किसी को कुछ नहीं कहता था व्यापारी अपने पुत्र के ऐसे स्वभाव के कारण उस पर बहुत अधिक नाराज रहता था ठीक से बातचीत न कर पाने और शर्मीले स्वभाव के कारण व्यापारी ने कई बार अपने बड़े पुत्र की पिटाई भी कर दी थी
हालांकि बार बार उस पर गुस्सा करने और पीटने की वजह से व्यापारी के बड़े पुत्र का स्वभाव सुधरने की बजाय और खराब हो गया था अब शर्म और संकोच के साथ साथ उसके अंदर डर भी बैठ गया था आत्मविश्वास की कमी की वजह से बड़ा पुत्र बचपन से ही बहुत अधिक परेशान रहने लगा था अपने डर की वजह से वह परीक्षा में याद किए गए प्रश्नों के उत्तर भी भूल जाता था और ने लिख नहीं पाता था इस कारण उसकी शिक्षा भी ठीक ढंग से पूरी नहीं हो पाई बड़ा पुत्र जब जवान हो गया तो व्यापारी ने उसे अपने साथ व्यापार में हाथ बंटाने के लिए कहा अपने पिता के प्रति डर के कारण वह व्यापार में उनका हाथ बंटाने के लिए तैयार हो गया लेकिन वह व्यापार में कई बार ऐसी गलतियां कर देता था जिससे व्यापारी उस पर बहुत अधिक मोहित हो जाता था
एक दिन की बात है व्यापारी किसी काम से शहर गया हुआ था और उस दिन दुकान पर उसका बड़ा पुत्र बैठा हुआ था तभी कुछ लोग आए और उन्होंने बड़े पुत्र से कहा कि हमें तुम्हारे पिता ने भेजा है और उनका यह संदेश है कि इस समय दुकान में जितनी भी नमक की बोरियां रखी हुई हैं वह सब हमें दे दो तुम्हारे पिता ने नमक की सभी बोरियों को शहर मनवाया है व्यापारी का पुत्र उनसे प्रश्न पूछने की हिम्मत जुटा ही रहा था कि वे दोनों आदमी दुकान के अंदर घुस गए और वहां जितनी भी नमक की बोरियां रखी हुई थी उन सबको अपनी घोड़ा गाड़ी में रखा और लेकर जाने लगी व्यापारी के पुत्र ने उन्हें रोकने का प्रयास किया लेकिन संकोच और डर के कारण वे उनसे कुछ कह नहीं पाया उसने मन ही मन सोचा कि अगर मैं इन्हें नमक ले जाने से रोकता हूँ तो पिताजी मुझ पर नाराज होंगे कुछ दिनों बाद जब व्यापारी शहर से वापस आया तो दुकान को खाली देखकर उसने अपने पुत्र से पूछा नमक की बोरियां कहां गई यह दुकान इतना खाली खाली क्यों है तब बड़े पुत्र ने सहमी हुई आवाज में कहा कुछ लोग दुकान पर आई थी और उन्होंने मुझसे कहा कि आपने नमक की सारी बोरियों को शहर मनवाया है और फिर वह दुकान की सारी बोरियों को निकालकर लेकर चली गई यह सुनते ही व्यापारी ने अपना सिर पीट लिया उसने पुत्र को दुकान से धक्का देकर बाहर निकालते हुए कहा मंद बुद्धि तुम मूर्ख का मूर्ख ही रह जाएगा विलुप्त उसे बेवकूफ बनाकर सारा सामान लूट ले गए तूने मेरा बहुत भारी नुकसान करवा दिया है अब यहाँ से चला जाए और घर वापस मत आना अगर तू वापस आया तुम्हें मार मारकर तेरी खाल उधेड़ दूंगा व्यापारी का पुत्र इस घटना से बहुत दुखी हुआ एक बार फिर उसके संकोची स्वभाव की वजह से उसके पिता उस पर और अधिक नाराज हो गए थे और साथ ही व्यापार में इतना भारी नुकसान हो गया था उस समय नगर के कई लोग व्यापारी के पुत्र पर हंस रही थी और उसका मजाक उड़ा रहे थे जिससे उसे खुद पर बहुत अधिक शर्मिंदगी महसूस हो रही थी यही वो समय था जब उसने मान लिया कि उसका कुछ नहीं हो सकता को हमेशा मूठ का मूल की रह जाएगा और इस समाज में रह रहे लोगों के साथ कदम से कदम मिलाकर कभी नहीं चल पाएगा यही सब सोच का हुआ व्यापारी का पुत्र नगर से बाहर आ गया और एक नदी के किनारे बैठकर खूब रोया गहरे पानी को देख कर उसके मन में विचार आया कि अब उसके जिन्दा रहने का कोई फायदा नहीं है उसने निश्चय कर लिया कि आज इस नदी में डूब कर वे खुद को समाप्त कर लेगा सफल जीवन जीने से अच्छा है कि वे खुद को समाप्त कर ली उसने जैसे ही नदी में छलांग लगाई और डूबने लगा तो उसी नदी में स्नान कर रहे एक बौद्ध भिक्षुओं ने उसे बचा लिया और नदी से निकालकर बाहर ले आए व्यापारी का पुत्र बौद्ध भिक्षु पर निराश होने लगा और कहने लगा कि आपने मुझे बचाया मैं इस सफल जीवन को जीना नहीं चाहता बौद्ध भिक्षु ने उसे समझाते हुए कहा कि जीवन एक ही बार मिला है और अगर तुम जीवित ही नहीं रहोगे तो असफलता को खत्म करके सफल कैसी बनोगे तब व्यापारी के पुत्र ने कहा कि मेरे जीवन में बहुत अधिक समस्याएं हैं
और ये समस्याएं मेरे शर्मीले और संकोची स्वभाव की वजह से है मैंने अपने डर और संकोच की वजह से अपने पिता का भारी नुकसान करवा दिया है मैं एक अच्छा पुत्र नहीं हूँ अपने भयभीत स्वभाव के कारण मैं ठीक से शिक्षा भी ग्रहण नहीं कर सका सारे नगर वासी मुझे मूर्ख समझते हैं क्या किसी मूर्ख को इस दुनिया में जीने का अधिकार है तब बौद्ध भिक्षु ने कहा कि तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर तो मेरे गुरु ही देंगे चलो मैं तुम्हें अपने गुरु के पास ले चलता हूँ व्यापारी के पुत्र ने कहा वह किसी से बात नहीं करना चाहता आज वह अपना जीवन समाप्त करके ही मानेगा किन्तु बौद्ध भिक्षु के बार बार समझाने पर वह उनके साथ चलने और उनके गुरु से मिलने को तैयार हो गया बौद्ध भिक्षु व्यापारी के पुत्र को आश्रम की ओर लेकर गए वहां पर व्यापारी के पुत्र ने देखा कि एक महात्मा पेड़ के नीचे ध्यान मग्न अवस्था में बैठे हुए हैं तभी बौद्ध भिक्षुओं ने उन महात्मा की ओर इशारा करते हुए कहा यह हमारे गुरु गौतम बुद्ध हैं दोनों ने गौतम बुद्ध को प्रणाम किया बुधनी उत्तर में एक मुस्कुराहट के साथ अपना हाथ उठा दिया वह नौजवान वहीं पर बैठ गया और बुद्ध को देख कर जोर जोर से रोने लगा गौतम बुद्ध ने उससे रोने का कारण पूछा तब उसने कहा कि अब आप ही मेरी आखिरी उम्मीद है यदि आप मेरी समस्या का समाधान नहीं करेंगे
तो मेरा यह जीवन समाप्त हो जाएगा गौतम बुद्ध ने व्यापारी के पुत्र से उसकी समस्या बताने को कहा तब उसने बताया कि किस प्रकार वह बचपन से ही शर्मीले और अंतर्मुखी स्वभाव का है इस कारण लोग उसे मूर्त समझ लेते हैं और उसके पिता भी उससे नफरत करने लगे तब गौतम बुद्ध ने युवक को शांत कराते हुए कहा कि मेरे पास भारी समस्या का समाधान है जिसके बाद तुम्हारा जीवन बहुत ही आसान हो सकता है युवक ने खुश होते हुए पूछा क्या सच में ऐसा हो सकता है
आप बहुत ही महान व्यक्तित्व प्रतीत होते हैं
आपके तो कई सीसीपी है ही महात्मन में भी आपका शिष्य बनना चाहता हूं कि आप मुझे अपनी फीस के रूप में स्वीकार करेंगे गौतम बुद्ध ने कहा कि हां अवश्य उस युवक ने कहा कि के गुरुदेव अब आप मुझे वह उपाय बताइए जिससे कि मेरा जीवन बदल जाए गौतम बुद्ध ने कहा लेकिन उससे पहले तुम्हें मेरे कुछ महत्वपूर्ण कार्य करने होंगे अगर तुम मेरी यह कार्य कर दो मैं तुम्हें कुछ ऐसे उपाय बताऊंगा जिससे तुम्हारे जीवन में सबकुछ ठीक हो जाएगा और तुम्हारे पिता भी तुमसे प्रसन्न रहेंगे गौतम बुद्ध ने आगे कहा आज से ठीक तीन दिन बाद मैं तुम्हें ऐसे उपाय बताऊंगा जिससे तुम्हारा जीवन पूरी तरह से बदल जाएगा लेकिन इन तीन दिनों तक तुम्हें मेरे सभी कार्य करने होंगे मैं जैसा जैसा कहूंगा अगर तुम ठीक वैसा ही कार्य करने में सफल रही तो तीन दिन बाद तुम्हारा जीवन बदल जाएगा तुम्हारा पहला दिन कल से शुरू होगा अभी जाओ और जाकर आश्रम ही आराम करो अगले दिन की सुबह होते ही व्यापारी का पुत्र गौतम बुद्ध के पास पहुंचा और बोला कि गुरुदेव उसे पहले दिन का कार्य बताइए तो गौतम बुद्ध ने कहा कि आज भी बीस अजनबी व्यक्तियों से बातचीत करनी है और उनका हाल जाना है इसका लेखा जोखा शाम तक लेकर आ जाना व्यापारी के पुत्र को
अंदर से बहुत डर महसूस हुआ लेकिन उसने गौतम बुद्ध को हां कह दिया फिर वह निकल पड़ा बीस अजनबी लोगों से बातचीत करने शुरू में तो उसे बहुत अधिक संकोच लग रहा था कई लोग तो उसे डांटकर भगा देती थी लेकिन उसके सामने अपना जीवन बदलने का यही एकमात्र उपाय था आखिर कार कोशिश करते हुए उसने बीस अजनबी लोगों के नाम और उनके व्यापार का लेखा जोखा प्राप्त कर लिया शाम होने पर जब वह गौतम बुद्ध के पास पहुंचा तो खुश होते हुए उसने गौतम बुद्ध को बताया कि आज का कार्य उसने सही ढंग से पूरा कर लिया है यहां तक कि कुछ लोग तो उसके मित्र बन गए हैं दूसरे दिन की सुबह होते ही फिर वह नौजवान गौतम बुद्ध के समक्ष पहुंचा तब गौतम बुद्ध ने कहा आज का कार्य है कि तुम आश्रम में रह रहे सौ शिष्यों को संबोधित करते हुए उन्हें जल के उपयोग के विषय में पढ़ाओ गौतम बुद्ध की यह बात सुनकर व्यापारी का पुत्र अक्का बक्का रह गया उसने कहा कि आप मुझसे यह किस प्रकार के कार्य करवा रही हैं मैं अपनी शिक्षा ठीक से पूरी नहीं कर पाया हूँ इसीलिए मैं पढ़ाने का यह कार्य नहीं कर पाऊंगा तब गौतम बुद्ध ने कहा कि ठीक है फिर भी तुम्हें उपाय भी नहीं बताऊंगा व्यापारी के पुत्र ने विनती करते हुए कहा कि आप जानते हैं कि मेरी शिक्षा अधूरी है कि में बालकों को शिक्षक कैसे दे सकता हूं गौतम बुद्ध ने हल्की सी मुस्कान भरते हुए कहा कि यहां सिर्फ मैं जानता हूँ कि तुम्हारी शिक्षा अधूरी है यह बालक नहीं जानते हैं तुम हर दिन अपने जीवन में जल का उपयोग करते हो यही सब बातें उन बालकों को जाकर बतानी है अंततः जब व्यापारी के पुत्र के पास कोई बहाना नहीं बचा तो हिम्मत जुटाकर वह उन बालकों के पास पहुंच गया शुरू में तो उसके हाथ पैर कांप रही थी लेकिन आखिरकार उसने बालकों को जल के महत्व के बारे में बताना शुरू कर दिया उसने बालकों को जल की पाँच विशेषताएं बताई और जल्दी से वहां से भाग आया गौतम बुद्ध के पास पहुँचकर उसने बताया कि बहुत अधिक डर लग रहा था किन्तु मैंने बालकों को जल की पाँच विशेषताएं बता दी है
बुधनी ने कहा कि जाओ एक और कोशिश कर के उस नौजवान ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और बालकों को जल के महत्व के बारे में पढ़ाना शुरू किया इस बार व्यापारी के पुत्र को बिल्कुल भी घबराहट नहीं हो रही थी उसने पूरे आत्मविश्वास के साथ बालकों को जल के विषय में पढ़ाया तब गौतम बुद्ध ने उसकी प्रशंसा करते हुए कहा तुम अवश्य ही साहसी हो गौतम बुद्ध के मुंह से अपनी प्रशंसा सुनकर वह युवक बहुत प्रसन्न हुआ युवक जब तीसरे दिन गौतम बुद्ध के पास आया तो गौतम बुद्ध ने उससे कहा कि आज का कारण तुम्हें कुछ अजीब लग सकता है किन्तु आज तुम्हें अपने पिता से मिलने जाना है गौतम बुद्ध के मुंह से यह बात सुनकर वहीं व बहुत अधिक डर गया उसने तुरंत कहा कि नहीं नहीं मैं अपने पिता के सामने नहीं जा सकता उसमें इतनी हिम्मत नहीं गौतम बुद्ध ने कहा कि ठीक है फिर मैं तुम्हें उपाय भी नहीं बताऊंगा अंकिता व्यापारी के पुत्र को गौतम बुद्ध की बात माननी पड़ी गौतम बुद्ध ने
से समझाते हुए कहा कि अपने पिता के पास जाकर उसे क्षमा माँगना और कहना कि वे तुम्हें एक और अवसर दे ताकि तुम खुद को बुद्धिमान साबित कर सकूं गौतम बुद्ध के कहे अनुसार उस युवक ने पूरे आत्मविश्वास के साथ अपने पिता का सामना किया और उसे क्षमा माँगी आखिर कार व्यापारी ने अपने पुत्र को क्षमा कर दिया और उसे एक और अवसर देने के लिए तैयार हो गया व्यापारी का पुत्र गौतम बुद्ध के पास आया और उस उपाय के बारे में उसने लगा जिसे गौतम बुद्ध ने तीन दिन बाद बताने का वचन दिया था तब गौतम बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा कि तुमने स्वयं ही अपना उपाय खोज लिया है तुम किसी से बात नहीं कर पाते थे संकोची अवसर मिले थे यह सब तुम्हारे मन में बैठा हुआ था और तुमने जैसे ही उस डर का सामना किया वे खत्म हो गया जीवन में तुम्हें जिस भी काम से डर लगे उस काम को करना शुरू कर दो दर स्वयं ही समाप्त हो जाएगा
युवक समझ चुका था कि गौतम बुद्ध उसे क्या बताना चाह रहे हैं उसने गौतम बुद्ध का धन्यवाद किया और उनसे वादा किया कि वह जीवन में सफल होकर दिखाएगा दोस्तों मुझे उम्मीद है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी
Thanks for Reading ❣️