एक बार एक बहुत ही दुखी व्यक्ति एक बौद्ध भिक्षु के पास आकर कहता है मैं अपने जीवन से बहुत दुखी हूं मैं अपनी पत्नी अपनी बच्चियों और अपने परिवार को भी खुश नहीं रख सकता मैं स्वयं के लिए भी कुछ नहीं कर पा रहा कभी कभी तो मुझे अपने जीवन को समाप्त कर लेने की थी विचार आते हैं आप इतने ज्ञानी हैं इतनी साधना करते हैं क्या आप मुझे कोई ऐसा रास्ता बता सकते हैं जिस पर चलकर मैं अपने बुरे हालातों से बाहर आ सकूं मेरा बहुत बुरा समय चल रहा है दो वक्त के खाने का इंतजाम करना भी मेरे लिए मुश्किल होता जा रहा है अब आप ही बताइए कि कितनी कठिन समय में में आखिर जिंदा रहूं भी तो किस उम्मीद में रहा हूं कैसे अपने परिवार को खुश रखो आपसे विनती है कि कोई साधारण सा तरीका बताने की कृपा करें ताकि में आसानी से समझ सकते क्योंकि मैं बहुत पढ़ा लिखा बुद्धिमान और ज्ञानी नहीं हूं अगर आप बड़ी बड़ी ज्ञान की बातें करेंगे तो शायद में कभी उन्हें समझ में नहीं पाऊंगा यह सुनकर बौद्ध भिक्षुओं ने मुस्कुराते हुए कहा तुम एक काम कर सकती हूं फिर बौद्ध भिक्षुओं ने सामने की ओर इशारा करते हुए कहा कि उस ऊंची पहाड़ी पर एक बौद्ध मत है और उस मठ के पास चीटियों का घर है जहां पर लाखों चीटियां रहती है तुम्हें सुनने में बड़ा अजीब लगेगा लेकिन वह चीटियां उस मटकी जमीन को बहुत खराब कर देती है आसपास की मिट्टी की उपजाऊ क्षमता को खत्म कर देती है जिस वजह से वहां आसपास कोई भी या घास पनप नहीं पाते हैं तुम पहले मेरा एक काम करो उसके बाद मैं तुम्हें तुम्हारे सारे सवालों का जवाब दूंगा तुम अगले सात दिनों तक रोज उस पहाड़ी पर जाओ और उन चीटियों के घर को तहस नहस कर तो उसे तोड़ दो जब भी तुम्हें मठ के आसपास चीटियों का कोई घर दिखे तो उसे उसी समय तहस नहस कर दो लेकिन याद रहे घर को तोड़ने के दौरान कोई भी चीरती मर्दिनी नहीं चाहिए
बौद्ध भिक्षु कि इन बातों को समझने का प्रयास करते हुए वह आदमी वहां से चला गया शायद उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि बौद्ध भिक्षु उसे ऐसा क्यों करवा रही हैं वह मन ही मन सोचता जा रहा था कि बौद्ध भिक्षु तो ऊंची सीढ़ियों पर अन्याय कर रहे हैं उनका घर तुड़वा रहे हैं उनका नुकसान करवा रहे हैं आखिर कौन महात्मा ऐसा तुच्छ कार्य करेगा लेकिन फिर भी वह बौद्ध भिक्षु की बातों को मानते हुए अगले दिन से ही पहाड़ी पर जाना शुरू कर देता है जब वह पहले दिन भारी पर पहुंचा तो उसने देखा कि बहुत सारी चिट्ठियां अपना भोजन जुटाने में लगी हुई है सारी चिट्ठियां एक कतार से चल रही है और अनाज के छोटे छोटे कद उठाकर अपने घर में इकट्ठा करती रही है यह देखकर पहले तो उस व्यक्ति का मन कमजोर पड़ गया उसने सोचा कि यह इतना कड़ा परिश्रम करके अपने लिए घर में भोजन इकट्ठा कर रही है और अगर मैं इनके घर को तबाह कर दूंगा तो यह कितना बुरा लगेगा
लेकिन फिर उसने बौद्ध भिक्षु की बातों को याद करते हुए चीटियों के घर को तोड़ना शुरू कर दिया जल्द ही छुट्टियों में हाहाकार मच गया वह जान बचाकर इधर उधर भागने लगे अभी तक जो एक कतार से चल रही थी वह बिखर गई और इधर उधर भागने लगे थोड़ी देर में घर टूट गया और सारी चिट्ठियां अपनी जान बचाने के लिए इधर उधर जाकर छुप चुकी थी यह करने के बाद वह व्यक्ति बड़े दुखी मन से वापस अपने घर लौट आया उसका मन अशांत था दुखी था और पश्चाताप से भरा हुआ था फिर उसने रात में अपने बिस्तर पर लेटे लेटे ही सोचा कि अब तो उन चीटियों का घर बर्बाद हो चुका है अब वह वापस जाने से क्या फायदा होगा महात्मा जी ने मुझे चीटियों का घर तहस नहस करने के लिए कहा था जो कि मैं कर चुका हूं लेकिन फिर कुछ सोचकर उसने अगले दिन वापस भारी पड़ जाने का निश्चय किया और सुबह होते ही वह उसी पहाड़ी पर पहुँच जाता है पहाड़ी पर पहुंचते हैं वह उसी जगह पर जाता है जहां एक दिन पहले उसने चीटियों के घर को बर्बाद किया था लेकिन वह यह देखकर चौंक जाता है कि चीटियों ने फिर से अपना घर उसी जगह पर बना लिया था और अब वह फिर से अपने घर के लिए समान इकट्ठा करने के काम में लगी हुई थी यह देखकर उस व्यक्ति ने मन ही मन सोचा कि यह चीटियां कितनी मूर्ख है कल ही इनका घर इसी जगह पर बर्बाद किया गया था और उन्होंने उसी जगह पर फिर अपना नया घर बना लिया यह सोचकर वह आदमी हंसने लगा लेकिन फिर से महात्मा की बातों को याद करते हुए उसने दोबारा उन चीटियों के घर को तबाह करना शुरू कर दिया फिर से उन चिट्ठियों के झुंड में हाहाकार मच गया और वह सभी जान बचाकर इधर उधर भागने लगी देखते ही देखते उनका घर कृषि ब हो चुका था और वह व्यक्ति थोडा संतोष के भाव से कि इस बार तो मैंने अच्छे से इनके घर को तबाह कर दिया है अब तो यह चीटियां यहां अपना घर बना ही नहीं पाएंगी इसीलिए जाने से पहले उसने उस घर पर ठंडा पानी भी डाल दिया ताकि चीटियां उस जगह अपना घर न बना सके और इस तरह अपना कार्य पूरा करके वह व्यक्ति वापस अपनी खराब गया आज रात बिस्तर में लेटे लेटे कोई व्यक्ति फिर से यही सोच रहा था कि क्या महात्मा यह सही काम करवा रहे हैं क्या किसी का घर बर्बाद कर पाना किसी सिद्ध पुरुष को शोभा देता है और क्या होगा अगर वह महात्मा कोई सिद्ध पुरुष ही न हो कहीं मुझे मूर्ख तो नहीं बना रहे लेकिन फिर उसने निश्चय किया कि पहले में अपने काम को पूरा कर लेता हूं उसके बाद ही पता चलेगा कि वह महात्मा मुझसे ऐसा क्यों कर रही थी और वह कोई सिद्ध पुरुष है भी या नहीं और यही सोचकर वह व्यक्ति रात में सो जाता है अगले दिन सुबह उठकर वह व्यक्ति फिर उसी पहाड़ी की तरफ चला जाता है पहाड़ी पर कर वह उसी जगह पर जाता है जहां पर उसने चीटियों के घर को तोड़कर उस पर ठंडा पानी डाल दिया था और वह यह देखकर खुश हो जाता है कि वहां पर कोई भी घर नहीं था सारी चिट्ठियां वहां से भाग चुकी थी तो उसने सोचा कि अब मेरा रोज रोज आने का क्या मतलब क्योंकि चीटियां तो अब इस स्थान को छोड़कर जा चुके हैं
लेकिन बौद्ध भिक्षुओं ने मुझे सात दिनों तक रोज आने के लिए कहा था और आज तो बस तीसरा दिन है तो बाकी के चार दिनों तक यहां आने से क्या फायदा होगा यही सोचकर उसने निर्णय लिया कि यहां से वह सीधा उन्हें बौद्ध भिक्षु के पास जाएगा और वहां पहुंचकर उन्हें सारी कहानी बता देगा जब वह वापस मुड़कर उस पहाड़ी से उन बौद्ध भिक्षु के कुतिया की तरफ जाने लगा तभी अचानक उसकी नजर एक और घर पर पड़ी जो कि चीन का ही बनाया हुआ था मतलब कि उस घर को उन्हें चीटियों नहीं बनाया था और अब वह चीटियां नए घर में वास कर चुकी थी यह नया घर उनके पुराने घर से थोड़ी ही दूरी पर था जब उस व्यक्ति की नजर उस घर पर पड़ी तो उसने सोचा कि शायद महात्मा को पता था कि यह चीटियां घर टूटने के बाद मठ के आसपास ही दूसरा घर बना लेंगी इसीलिए उन्होंने मुझे सात दिनों तक लगातार आने के लिए कहा था और यह सोचकर वह उन सीढ़ियों का नया घर तोड़ने पहुंचाता है जब वहां पहुंचा तो चीटियां उसी तरह अपने काम में लगी हुई थी वह अपने लिए खाना इकट्ठा कर रही थी और अपने नए घर में जमा कर रही थी जब पुराना घर टूटा था वहां भी अनाज के बचे हुए थी तो वह चीटियां वहां से भी अनाज की कमी इकट्ठा करके अपने नए घर में ला रही थी अब यहां यह सब देखकर उस व्यक्ति का मन थोड़ा कमजोर पड़ा गया क्योंकि वे खुद भी कमजोर था खुद भी समय का मारा हुआ था इसीलिए उसके मन में उन चिट्ठियों के प्रति दया का भाव जन्म ले रहा था उनके ऊपर उसे दया आ रही थी वह चाहता था कि वह उनकी सहायता करें लेकिन में उल्टा उनको नुकसान पहुंचा रहा था लेकिन उन बौद्ध भिक्षु की बातों को याद करते हुए उसने फिर से उनके घर को तोड़ने का निस
किया और उसने इस बार बिना किसी चीरती को नुकसान पहुंचाया बड़ी ही सावधानी से उस घर को तोड़ना शुरू कर दिया समय थोडा ज्यादा लगा क्योंकि किसी भी छोटी को नुकसान न पहुंचाने की सथ बौद्ध भिक्षु ने पहले ही रख दी थी इसीलिए वह बड़ी ही सावधानी से चीटियों के घरों को तबाह कर रहा था और आखिरकार उसने
घर को भी तबाह कर दिया उस घर को तबाह करने के बाद वह बड़े ही दुखी मन से घर की तरफ चल पड़ा इस बार वह पहले से भी ज्यादा दुखी था क्योंकि उसने उनका दूसरा नया घर भी तोड़ दिया था वह चीटियों को कहीं भी बस नहीं नहीं दे रहा था और अब वह अपने आप को शैतान और दानों समझने लगा था आत्म ग्लानी भरे विचारों में डूबा हुआ वह बड़े ही दुखी मन से घर वापस आ गया रात में सोने से पहले एक बार उसने फिर से सोचा कि मैं कितना बड़ा पापी हूँ कितना बड़ा रक्षा सौदा पुराना घर तो छोड़ो मैं हूँ छुट्टियों को बसने के लिए कहीं कोई जगह ही नहीं दे रहा हूं वह चीटियां भला मेरे बारे में क्या सोचती होंगी कि वह कितना बड़ा दोनों होगा जो हमारा घर टूट रहा है लेकिन बौद्ध भिक्षु की बातों को याद करके उसने अगले दिन फिर उसी भारी पड़ जाने का निश्चय किया और सुबह होते ही वह उस पहाड़ी पर पहुंच गया वहीं यह देखकर फिर से आश्चर्य चकित रह गया कि चीटियों ने फिर से एक नई जगह पर अपना घर बना लिया है वह तो पहले से भी ज्यादा ऊर्जा के साथ कार्य कर रही थी और उन्होंने सिर्फ एक रात में पहले से भी बड़ा घर बना लिया था और अब वह फिर से अपने लिए अनाज और खाना इकट्ठा करने में लगी हुई थी यह देखकर उस व्यक्ति ने सोचा कि यह चिडिया किस मिट्टी की बनी हुई है मई ही बार बार यहां से भगाने की कोशिश कर रहा हूं लेकिन यह बार बार यही पर ही अपना घर बना लेती है क्या इनको पता नहीं है कि मैं यह कभी भी यहां बसने नहीं दूंगा यह छूती है आकार में इतनी छोटी है लेकिन फिर भी मुझसे हार नहीं मान रही बड़े आश्चर्य की बात है और इस बार उसने क्रोध में आकर उस घर को तहस नहस करना शुरू कर दिया लेकिन इस बार तहस नहस करते समय कुछ चीटियां वहीं पर मर गई उसके पैरों तले कुचल दी गई घर को बर्बाद करने के बाद जब वह अपने अहंकार और गुस्से से बाहर आया तो उसने देखा कि गुस्से में उसने चीटियों को कितना ज्यादा नुकसान पहुंचा दिया है यह देख उसका मन में आत्मग्लानी और पश्चाताप से भर गया और वह रोता हुआ अपने घर की तरफ चल पड़ा रात में सोते समय उसने सोचा कि मैं उन चिट्ठियों पर कुछ ज्यादा ही अत्याचार कर रहा हूँ अब इससे ज्यादा अत्याचार मैं नहीं कर पाऊंगा और यही सोचकर वह अगले दिन उन चिट्ठियों के लिए अपने घर से कुछ आटा लेकर उसी पहाड़ी पर पहुँच जाता है आज उसके मन में उन चीटियों के प्रति करुणा का भाव था दया का भाव था आज में उनकी मदद करना चाहता था और जब वह उसी स्थान पर पहुंचा तो देखा कि चीटियां फिर से अपने नए घर को बनाने में जुटी हुई थी उसने बड़े ही दया भाव के साथ चीटियों को अपने घर से लाया हुआ आटा खिलाया अगले सात दिन पूरा होने तक वह व्यक्ति ऐसा ही करता रहा वह रोज सुबह उस भारी पड़ जाता और उन चिट्ठियों को अपने हाथों उसे आता खिलाता सात दिन पूरे होने के बाद वह व्यक्ति उन बौद्ध भिक्षु के पास जाकर हाथ जोड़कर कहता है कि है महात्मा जी मुझे माफ कर देना मैंने उन चिट्ठियों का घर तबाह करने की बहुत कोशिश की मैंने उनका घर तोड़ा भी एक बार नहीं चार बार मैंने उनका घर तबाह किया लेकिन उसके बाद मैं हिम्मत नहीं कर पाए
उनके घर को नहीं तोड़ पाया मैं जानता हूं कि मैंने आपका कार्य पूरा नहीं किया और इस वजह से आप मुझे वह तरीका भी नहीं बताएंगे जो मुझे मेरे बुरे समय से बाहर निकाल सकता था लेकिन मुझे इसका कोई दुख नहीं है क्योंकि मुझे लगता है कि मैंने जो किया एकदम सही किया इसीलिए मैं आप से आज्ञा लेकर वापस आ रहा हूँ कृपया मुझे
अपने घर जाने की आज्ञा दीजिए उस व्यक्ति की यह बात सुनकर बौद्ध भिक्षु ने मुस्कुराते हुए कहा कि ठहरो कहां जा रहे हो जलपान तो करते जाओ और यह कहकर बौद्ध भिक्षु उस व्यक्ति के लिए पानी और थोड़ा खाने के लिए लेकर आते हैं जल पान कराने के बाद बौद्ध भिक्षु उस व्यक्ति से पूछते हैं कि तुम मुझे बताओ आखिर तुम उन चिट्ठियों का घर तबाह ही कर सके वो चुटिया तो छोटी थी और तुम उनके सामने इतनी विशालकाय थी फिर भी तुम उन छोटी छोटी चीटियों का घर तबाह नहीं कर पाई कहां है तुम्हारी सकती है हम तुम्हारा बाहुबल इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उस व्यक्ति ने कहा कि ही महात्मा मैंने उन चीटियों का घर तबाह कर दिया था बार बार किया था एक बार तो क्रोध में आकर मैंने उन चीटियों को भी चोट पहुंचा दी थी लेकिन जिस दिन मैंने उनको चोट पहुंचाई उसी दिन मुझे लगा कि आखिर में इन बेजुबानों को क्यों नुकसान पहुंचा रहा हूँ क्यों इतनी छोटी पहुंचा रहा हूं और उसी दिन से मैंने उनको नुकसान पहुंचाने की बजाय उनकी मदद करनी शुरू कर दी यह सुनकर उन बौद्ध भिक्षु ने कहा कि यही तो सीखने की बात है एक छोटी सी चींटी हमें जीवन का बहुत बड़ा संदेश दे जाती है मैंने तुम्हें उन चिट्ठियों का घर तबाह करने के लिए नहीं भेजा था मैंने तुम्हें भेजा था ताकि तुम उन चिट्ठियों से कुछ सीख ले सको तो वीडियो से क्या सीखने को मिला क्या तुम मुझे बता सकते हो यह सुनकर उस व्यक्ति ने पूरी घटना बौद्ध भिक्षु को सुनाती पूरी घटना को ध्यान से सुनने के बाद बौद्ध भिक्षुणी मुस्कुराते हुए कहा कि पहली सीट जो तुम उन चिट्ठियों से नहीं सकती थी वह यह है कि कितनी ही बार तुमने उनके घर को तोड़ने की कोशिश की कितनी ही बार प्रयास किया कि उनके घर तबाह हो जाएं लेकिन वो हर बार अपना नया घर बना ली दी थी उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी अगर वह हार मान ली थी तो वह चिड़िया तुम्हें उस जगह पर दोबारा नहीं मिलती जीवन कार्यशीलता का नाम है लेकिन हम मनुष्य एक तो बार सफलता मिलने पर ही टूट जाते हैं हार मान लेते हैं और फिर प्रयास करना ही बंद कर देते हैं यहां तक कि कुछ लोग तो अपनी जिंदगी को खत्म करने पर ही उतारू हो जाते हैं
लेकिन जानवरों में तुमने एक बार देखी होगी कि वह अपना जीवन में कुछ से कभी खत्म कर ही नहीं सकते है तुमने कभी नहीं सुना होगा कि किसी जानवर ने आत्महत्या कर ली चाहे वह जानवर कितना भी फूंका क्यों उन्हें हो कितना ही दुखी क्यों न हो लेकिन वो अपने जीवन के लिए हमेशा संघर्ष करता रहता है इसके विपरीत कुछ लोग एक दो बार हताश होने की बाद ही अपना जीवन खत्म करने की कोशिश करने लगते हैं जीवन तो कर्मशीलता है कर्म करते रहने का नाम है जीवन के पश्चात मृत्यु आखरी विश्राम है और हम विश्राम है इसीलिए मृत्यु से पहले कम करना कभी मत छोड़ना क्योंकि मृत्यु के पश्चात तो तुम परम विश्राम में चले जाओ तो उससे पहले अपना कर्म करना छोड़ रहे हो क्यों दुखी हो रहे हो अगर तुम्हारा एक घर टूट गया है तो दूसरा घर बनाने का प्रयास करो कोशिश करते रहो क्योंकि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती यह तुम नंगी चूचियों से सीख चुके हो वो चीटियां देखने में तुमसे कितनी छोटी है लेकिन उनका मन तुम्हारे मन से इतना मजबूत है इतना विशाल है इतना दृढ़ संकल्पित है कि इतनी बार घर टूटने पर भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी दूसरी सीख यह है कि जब भी हमारे जीवन में बुरा समय आता है तो हमें लगने लगता है कि यह बुरा समय कभी नहीं जाएगा यह समय मेरे जीवन को बर्बाद कर देगा उसे आगे नहीं बढ़ने देगा और अपने इन्हीं ख्यालों से इन्हीं विचारों से जिसका असली है में कोई भी अस्तित्व नहीं है वो सिर्फ एक नकारात्मक विचार है और यही विचार हमारे मन को दुखी रखने लगता है और इसीलिए फिर हम प्रयास करना भी छोड़ देते हैं लेकिन तुम खुद सोचो कि बार बार प्रकृति हमें नुकसान पहुंचाएगी क्षति पहुंचाई थी लेकिन कब तक पहुंचाएगी यदि हम बार बार उठके फिर से नया प्रयास करते रहेंगे तो प्रक्रि
एटीपी हमारे सामने घुटने टेक देती है और वह भी एक दिन हमारे ऊपर मेहरबान हो जाएगी दयावान हो जाएगी और वह हमें वो सब कुछ देने लगेगी जिसकी हमने कभी कामना की थी तुमने स्वयं देखा कि तुम उन चिट्ठियों को तबाह करने के लिए पहुंचे थे लेकिन बाद में तुम्हें उन चीटियों को अनाज और आता देने लगे तुम्हें ऊंची चोटियों पर दयावान हो गए कि हुए क्योंकि तुमने देखा कि वह चीटियां हार ही नहीं मान रही है इसी तरह अगर तुम भी अपने जीवन में कभी हार नहीं मानोगे तो एक न एक दिन यह प्रकृति तुम्हें वह सब कुछ देगी जो तुम अपने जीवन में पाना चाहते थे इसीलिए यह दो सीख हमेशा याद रखना पहली कि जीवन कर्मशीलता का नाम है और दूसरी कि एक न एक दिन प्रकृति तुम्हें तुम्हारे अच्छे कर्मों का फल जरूर देगी दोस्तों उम्मीद है कि आपको यह कहानी पसंद आई होगी
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