Bhootiya Village - Horror Stories in Hindi |

Bhootiya Village - Horror Stories in Hindi | सच्ची कहानी 
मेरा नाम अविनाश है मेरी उम्र 30 साल है
और में दिल्ली शहर का रहने वाला हूँ मेरा पूरा परिवार असल में बिहार के बहुत अंदरूनी गांव से आता है लेकिन मेरा परिवार अस्सी साल पहले माइग्रेट होकर दिल्ली आ गया था मेरे या मेरे पिता में से कभी कोई गांव नहीं गया था पर पांच साल पहले दो हज़ार पंद्रह में जब बहुत कोशिशों के बाद मेरी बीवी राज प्रेग्नेंट हुई तो डॉक्टर ने कहा कि हमें राशि की अच्छी सेहत के लिए उसे शुद्ध वातावरण में ले जाना चाहिए हम सबने सोचा कि हमारे गांव से शुद्ध वातावरण तो हमें कहीं नहीं मिलेगा तो हम ने अपने बिहार वाले गांव में जाने का फैसला किया पर हमें नहीं पता था कि हमारा यह फैसला हमारी जिंदगी हमेशा के लिए तबाह कर देगा बहुत लंबे सफर के बाद हम रात को गांव पहुंचे उस चांदनी रात में गांव बहुत सुंदर लग रहा था वहां एकदम शांति थी गांव पहुंचकर राष्ट्र की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था पर उसे नहीं पता था कि खुशी बस कुछ ही घंटों की थी दो साल पहले हुई मां की मौत के बाद पिताजी भी पहली बार घर से बाहर निकले थे मैंने गांव का घर खुला और राष्ट्रीय और पिताजी को घर के अंदर कमरे में बैठाया में जैसे ही सामान लेकर कमरे में वापस आया तो मैंने देखा कि पापा सोफे पर बेहोश पड़े थे और उनका चेहरा सफेद बढ़ गया था मुझे समझ नहीं आया कि अचानक पापा को क्या हो गया है राजश्री ने मुझे जल्दी से पापा को हॉस्पिटल लेकर जाने को कहा हॉस्पिटल गांव से दूर शहर में था और मैं उस हालत में राशि को अकेला नहीं छोड़ना चाहता था पर राशि की हालत ज्यादा ट्रैवल करने लायक नहीं थी राष्ट्रीय ने मुझे हिम्मत दिखाई और पापा के साथ जाने को कहा मैं पापा को गाड़ी में बिठाकर हॉस्पिटल चला गया पापा पूरी रात हॉस्पिटल में ही भर्ती थे दरअसल बीपी लो होने के कारण वह बेहोश हो गए थे और डॉक्टर ने उनको ग्लूकोस कर घर ले जाकर राम करवाने को कहा मैंने राशि को रात भर फोन करने की कोशिश की पर उसने फोन ही नहीं उठाया मैं अगली दोपहर पापा को लेकर जब घर गया तो मैंने देखा तो बेहद ही अजीब और डरावना था मैंने देखा कि राशि कमरे के कोने में खड़ी है और दीवार की तरफ मुंह कर अपने नाखूनों से दीवार को नोच रही है देखते ही मैं अंदर से कांप गया जैसे ही मैंने उसे आवाज भी उसने दीवार खरीदना बंद कर दिया और वो मेरी तरफ मुड़कर पापा के बारे में पूछने लगी जैसे अभी कुछ हुआ ही नहीं था में डटे हुए धीरे से उसकी ओर बड़ा मुझे लगा कि शायद ये सब स्ट्रेस का नतीजा है तुम्हें राष्ट्रीय को कमरे तक लेकर गया और उसे वहां सुला दिया मेरे डॉक्टर को फोन करके उसको सब बताया तो उसने भी राष्ट्रीय की हरकतों को थकान और स्ट्रेस बताकर राष्ट्रीय का खास ध्यान रखने को कहा अगले दो दिन कुछ नहीं हुआ फिर एक रात अचानक से मेरी नींद खुली रांची बेडरूम में नहीं थी मैंने उसे पूरे घर में दूंगा लेकिन वह कहीं नहीं मिली
उसे ढूंढते ढूंढते जब मैं आंगन में पहुंचा तो मैंने जो देखा वह देखकर मेरे होश उड़ गए मैंने देखा कि श्री छत के कोने की तरफ उल्टी चल रही थी
साथ ही कुछ बड़बड़ा रही थी मैं बहुत बुरी तरह डर गया क्योंकि एक गलत कदम और श्री छत से सीधा नीचे गिर सकती थी मैं भाग कर छत पर गया और राशि को चिल्लाकर उड़ाने की कोशिश की पर उसको कई बार बुलाने पर भी उसने कोई जवाब नहीं दिया और अचानक ही वह बेहोश होकर गिर पड़ी मैं उसके पास गया तो मैंने देखा कि उसे कोई होश ही नहीं था क्यों उसके साथ क्या हो रहा है तो काफी डरी हुई थी और रोते हुए एक ही चीज कही जा रही थी वो मुझे और हमारे बच्चे दोनों को लेने आई है उसके बाद सुनते ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैं समझ गया था कि का नहीं बल्कि किसी बुरे साय की वजह से हो रहा है मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था और देखते ही देखते राष्ट्रीय का शरीर अब तपने लगा था मेरे पास और कोई चारा नहीं था इसलिए मैंने आधी रात में ही गांव के सबसे बड़े पंडित को घर बुलवा लिया मैंने रास्ते को बिस्तर पर लेटाया और पंडित जी का इंतजार करने लगा उनके आने पर में उन्हें लेने बाहर गया और जब हम लोग कमरे में वापस आए तो राज राजवी अपने बेड पर नहीं थी
हम फिर से पूरे घर में उसे ढूंढने की कोशिश करने लगे पर वह कहीं नहीं दिखी में बैडरूम में वापस आया तो मेरी नजर हमारे कमरे की अलमारी के ऊपर गई और मेरा दिल दहल उठा राज भी अपने घुटने सर में दिए उसी अलमारी के ऊपर बैठी थी
उसे देखते ही पंडित जी भी भौचक्के रह गए
और उन्होने मुझे उस कमरे से निकल जाने को कहा मिराज भी को अकेला नहीं छोड़ सकता था
लेकिन पंडित जी की बात भी नहीं डाल सकता था मैं कमरे से बाहर जाने के लिए जैसे ही मुड़ा वैसे ही ऊपर बैठी राजश्री ने अपना सर उठा
राक्षस है काली पड़ चुकी थी और वो एक डरावनी सी हंसी हंस रही थी उसके हाथ में एक बड़ा सा चाकू भी था इससे पहले कि कोई कुछ करता राष्ट्रीय ने उस चाकू को अपनी ही पेट पर ज़ोर ज़ोर से मारना शुरू कर दिया को मारते हुए व्यवस्था फंसती जा रही थी कुछ ही पलों में राष्ट्रीय बेहोश होकर अलमारी से नीचे गिर गई
मैं यह सब देखकर सुन पढ़ गया था और मेरी आंखों से आंसू आने लगे पंडित जी ने मुझे रास्ते से दूर किया और मुझे वहां से जल्द से जल्द निकलने के लिए कहा उन्होंने बताया कि करीब पचास साल पहले इसी गांव में एक लड़के ने एक छोटी जाति की लड़की से शादी की थी शादी के एक साल बाद उनका बच्चा भी होने वाला था पर उस लड़के के घरवालों को यह मंजूर नहीं था
इसलिए उन्होंने उस लडकी और उसके पेट में पल रहे बच्चे को बेरहमी से मार दिया था तब से लेकर आज तक हम गांव में कभी भी किसी गर्भवती महिला को अकेले नहीं छोड़ते हैं कहते हैं क्यूसी लडकी का साया किसी को भी मां नहीं बनने देता यह सब सुनकर मैं तड़प तड़प कर रोया मेरी ज़िंदगी उस एक हफ्ते में पूरी तरह बर्बाद हो गई थी मैं आज भी हर दिन अफसोस करता हूं कि मैं रात स्त्री को उस गांव में क्यों लेकर गया अगर उस गांव में नहीं जाता तो शायद आज वो मेरे पास होती
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