भूत बाज़ार - डरावनी कहानियाँ हिंदी में | सच्ची कहानी |
भूत बाजार
सोनू नाम का एक लड़का काम की तलाश में शहर के बड़े बाजार में आया था बाजार कुछ साल पहले तक इससे भी बड़ा हुआ करता था लेकिन दंगों के चलते बाजार के पास वाले कॉम्प्लेक्स को कुछ दंगाइयों ने जला दिया था इस हादसे में कई लोग भी मारे गए और कई लोगों के तो घर भी उजड़ गए अब उस जले हुए कॉम्प्लेक्स की बिल्डिंग जो कि कभी एक शानदार सोसाइटी हुआ करती थी एकदम सुनसान पड़ी रहती है
पहले तो कुछ लोगों ने सोचा कि खाली इमारत का इस्तेमाल किया जाए दो वहां घर बसाने गए तो सही लेकिन दो दिन से ज्यादा नहीं टिक पाए उनका कहना था कि उन दीवारों से आज भी आग की लपटें निकलती है लोगों की चिल्लाने की आवाजें गूंजती है यहां तक कि उस बिल्डिंग के अंदर ढंग से सांस भी नहीं ली जाती है इसके कारण कई लोग उस कॉम्प्लेक्स को भूत बाजार बुलाने लगे कुछ लोगों ने तो अपना रोष का रास्ता ही बदल लिया वो दो चौक घूम कर आते मगर उस जले हुए कॉम्प्लेक्स को पार नहीं करते थे
सोनू को उस कॉम्प्लेक्स के ठीक पास एक कपड़ों की दुकान में काम मिल गया था दोपहर के समय जब धूप बढ़ जाती तो कम ही ग्राहक आते थे
एक बार श्यामल जो कि उस कपड़ों की दुकान का मालिक था दोपहर में बैठा अपनी दुकान में आराम कर रहा था सोनू और व दोनों बातचीत कर ही रहे थे कि इतने में हरी आंखों वाली खूबसूरत सी लाल साड़ी पहनी हुई एक औरत दुकान में आई और श्यामल के सामने आकर बैठ गई सोनू को जो बाद बहुत अजीब लगी वह यह थी कि उस औरत ने कुछ नहीं बोला कि उसे किस तरह के कपड़े देखने है और श्यामल अपने आप ही उसे लाल सर्दियां खोलकर दिखाने लगा दोनों से यह बात हजम नहीं हो रही थी लेकिन फिर अचानक उठ खड़ी हुई और दुकान से बाहर जाने लगी श्यामल भी बिना कुछ कहे उठकर उसके पीछे चल दिया सोनू ने शामिल को पीछे से कई आवाज लगाई मगर उस पर कोई असर ही नहीं हो रहा था जब सोनू की आवाज थोड़ी तेज हुई तो बोरड् पीछे पलटी और सोनू की हालत खराब हो गई अचानक ही उसे पसीने आने लगे और वो नीचे बैठ गया उसने उस औरत की आंखों का रंग बदलते हुए देखा था उस औरत की हरी आंखें अचानक से मिली हो गई थी यह देखकर सोनू सहम गया और दुकान के अंदर ही सुन्न सा खड़ा हो गया सोनू दुकान को अकेला नहीं छोड़ सकता था इसलिए वह बाहर उठकर नहीं गया थोड़ी ही देर में कई सारे लोग दुकान से आगे भागते हुए नजर आए एक दुकानदार भागते हुए आया और उसने सोनू को बताया कि कॉम्प्लेक्स के सामने श्यामल बेहोश पड़ा मिला है होश आने पर शामिल को कुछ भी याद नहीं था वो बस बार बार यह कह रहा था कि कॉम्प्लेक्स में दुबारा आग लग गई है लेकिन वो कॉम्प्लेक्स तो आज भी वैसा ही सुनसान पड़ा था वहां ऐसा कुछ भी नहीं था
पर सोनू का दर बढ़ने लगा था वह चाहकर भी उन हरी आंखों वाली औरत को भूल नहीं पा रहा था अगले दिन दोपहर के वक्त सोनू ने दुकान के सामने से फिर उसी औरत को जाते हुए देखा
डरा हुआ था मगर वह उसके बारे में जानना चाहता था तो उसने हिम्मत की और शामिल को बताए बिना दुकान से बाहर चला गया गौरव कॉम्प्लेक्स की तरफ जा रही थी सोनू ठीक उसके पीछे पीछे चल रहा था मगर अचानक वो औरत सोनू की आंखों के सामने से गायब हो गई सोनू को लगा कि वो औरत उस कॉम्प्लेक्स के अंदर गई है महीनों का डर सोनू को अंदर जाने से रोक रहा था मगर वो उस औरत के बारे में किसी भी हाल में जानना चाहता था उसने कॉम्प्लेक्स के दरवाजे की तरफ चलना शुरू किया चारों तरफ सिर्फ काली दीवारें ही थी इतनी तेज धूप और रोशनी में भी वह चमक नहीं रही थी माणूस कॉम्प्लेक्स में एक अलग सा अंधेरा छाया हुआ था
वो चली हुई दीवारें अगर कोई गौर से देखें तो मालूम हो रहा था कि किस तरह आग की लपटों ने उन्हें जकड़ लिया था अंदर जाते वक्त सोनू को अखबारों की हेडलाइन याद आ रही थी लगभग बारह परिवार बाहर आ करते थे लेकिन सभी बेरहमी से जलकर मारे गए थे सोनू फिर भी हिम्मत करके कॉम्प्लेक्स के अंदर आ गया था
कॉम्प्लेक्स की दीवारें जैसे चीख चीखकर बता रही थी कि उस रात वहां क्या हुआ था हैरत की बात तो ये थी कि सोनू को अचानक से बहुत ही गर्मी लगने लगी मौसम जैसी गर्मी नहीं बल्कि ऐसी जैसे कोई उसे आग की लपटों में झुलसा रहा हो उससे और आगे चला नहीं जा रहा था
वह हफ़्ते हुए एक जगह रुक गया और सहारे के लिए उसने अपना हाथ एक दीवार पर रख दिया
पर अगले ही झटके में उसके मुँह से एक जोर की चीख निकली उसने अपने हाथ की ओर देखा तो वो जल गया था बार इतनी गरम थी जिसे अभी भी को आग की लपटों को अपने अंदर बसाए हुए हो इस सदमे से सोनू उभरा ही था कि उसे उस औरत की लाल साड़ी कॉम्प्लेक्स की एक बालकनी में दिखी बोस की ओर गुस्से में भागा
लेकिन आगे बढ़ते हुए सोनू को चारों ओर से चीखने की आवाज आने लगी उसने हर तरफ देखा पर वहां कोई भी नहीं था इन चीखों को पार करते हुए बड़ी हिम्मत कर के वो एक कमरे में पहुंचा जहां घुसते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया
ताकि उसे कोई आवाजें आए कमरे के झुलसती गर्मी बढ़ती ही जा रही थी सोनू उस कमरे की खिड़की खोलने के लिए आगे बढ़ा तो अचानक ही उस पूरे कमरे में आग लग गई कुछ ही सेकेंड में पूरा कमरा धुंए और आग की लपटों से भर गया था वो चीखने की आवाज अब सोनू की थी
जॉर्ज मरीज की हालत में दरवाजे की ओर रिंग कर बढ़ रहा था आग के धुएं की वजह से उसकी सांसे और कम होती जा रही थी इतने में दरवाजा खुला लेकिन वह हरी आंखों वाली औरत अपनी लाल साड़ी पहने उसके सामने आकर खड़ी हो गई सोनू ने मदद की गुहार मांगी मगर उसकी आँखों में भी वही ज्वाला दिखाई थी मानो वह सोनू से किसी चीज का बदला ले रही हो
आग की लपटों के बीच में सोनू चक्कर खाकर गिर पड़ा जब उसे होश आया तो वह कॉम्प्लेक्स के बीच जो मैदान था वहां पर गिरा पड़ा था हड़बड़ाते हुए उसने कॉम्प्लेक्स को देखा दीवारें एकदम शांत थी आग का कोई नामोनिशान नहीं था सोनू फौरन उठा और वहां से भाग निकला
उसने बाहर आते ही लोगों को अपने साथ हुए हादसे के बारे में बताया तो किसी ने भी उसकी बात पर यकीन नहीं किया क्योंकि किसी ने भी उस हरी आंखों वाली औरत को नहीं देखा था
यहां तक की दुकान के सीसीटीवी कैमरा तक चेक करेगा पर वो औरत उसमें भी कहीं नहीं मिली फिर एक रोज एक बुरे आदमी ने सोनू को बताया कि खड़ी आंखों वाली औरत उसी कॉम्प्लेक्स में रहती थी और शामिल की दुकान की जगह उसी की दुकान हुआ करती थी
लेकिन को उस कॉम्प्लेक्स में लगी आग में जलकर राख हो गई सोनू यह सुनकर दहल गया था को तुरंत उस शहर को छोड़कर वापस अपने गांव चला गया उसे फिर कभी वो औरत दिखाई नहीं दी पर उस औरत की हरी आंखें पुरुष कॉम्प्लेक्स की जलती दीवारों का डर शायद ही कभी अपने दिमाग से निकाल पाएगा
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